पटना पहुँचा जर्मनी से मंगाया गया थ्री-डी डोम स्क्रीन | बिहार | 12 Jan 2023
चर्चा में क्यों?
11 जनवरी, 2023 को जर्मनी से मंगाया गया नया थ्री-डी डोम स्क्रीन तारामंडल पटना पहुँच गया। इसके लगने से जल्द ही पटना के लोगों को तारामंडल में थ्री-डी स्क्रीन पर तारों की दुनिया को देखने और समझने का अवसर मिलेगा।
प्रमुख बिंदु
- पटना के तारामंडल के आधुनिकीकरण की ज़िम्मेदारी जर्मन कंपनी कालजाइज को दिया गया है। अगले सप्ताह से कालजाइज व एनसीएसएम की टीम थ्री-डी डोम स्क्रीन के अलग-अलग पैनल को इंस्टॉल करेगी। इससे तारामंडल का प्रोजेक्शन सिस्टम पूर्ण रूप से डिजिटलाइज हो जाएगा।
- लगभग 34 करोड़ रुपए से आधुनिकीकरण होने से यहाँ सौरमंडल पर बनी वर्ल्ड क्लास फिल्में देख सेंकेगे। इसके साथ ही लेजर प्रोजेक्टर आरजीबी किरणों को कंप्यूटर के माध्यम से मिश्रित कर थ्री-डी शो के लिये वास्तविक रंगों का निर्माण करेगा।
- दर्शकों की सुविधा के लिये सीटिंग एरेंजमेंट में भी बदलाव किया जाएगा, जो पहले के मुकाबले और भी आरामदायक होगा।
- तारामंडल के प्रोजेक्ट एंड प्रोग्रामिंग डायरेक्टर अनंत कुमार ने बताया कि अगले सप्ताह से थ्री-डी स्क्रीन को इंस्टॉल करना शुरू कर दिया जाएगा। इसके बाद साइड वॉल और सीटिंग एरेंजमेंट की व्यवस्था की जाएगी। अप्रैल 2023 के पहले सप्ताह तक दर्शक यहाँ नये अंदाज में तारों की दुनिया से रूबरू हो सकेंगे।
- तारामंडल के आधुनिकीकरण के साथ ही यहाँ आने वाले विजिटर्स के लिये अलग से स्पेस एंड एस्ट्रोनॉमी गैलरी तैयार की जाएगी। तारामंडल भवन के पहले तल्ले पर करीब 600 वर्गफुट में दो करोड़ रुपए से इस नयी गैलरी का निर्माण किया जाएगा। इस गैलरी में लोगों को अंतरिक्ष, गैलेक्सी, तारा और सौरमंडल के बारे में मल्टीमीडिया पैनल और इंटरेक्टिव प्रदर्शों के माध्यम से विस्तृत जानकारी दी जाएगी।
- स्पेस एंड एस्ट्रोनॉमी गैलरी का डिजाइन राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद की टीम द्वारा किया गया है। गैलेरी के निर्माण में नवीनतम तकनीक का इस्तेमाल करते हुए एलइडी स्क्रीन, लेजर बेस्ड प्रोजेक्टर व अपडेटेड डिस्पले टेक्निक का इस्तेमाल किया जाएगा।
जीपीआर सर्वे में पटना सिटी में प्राचीन पाटलिपुत्र के अवशेष मिलने के संकेत | बिहार | 12 Jan 2023
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बिहार राज्य सरकार ने प्राचीन पाटलिपुत्र के अवशेष की खोज करने के लिये ग्राउंड पेंट्रेटिंग राडर (जीपीआर) से सर्वे शुरू करवाया है। जिसमें प्राचीन पाटलिपुत्र के अवशेष मिलने के संकेत मिल रहे हैं।
प्रमुख बिंदु
- जीपीआर सर्वे वर्तमान गुलजारबाग के इर्द-गिर्द के क्षेत्रों में आईआईटी कानपुर की टीम के द्वारा किया जा रहा है। इस टीम ने बताया कि गुलजारबाग के इर्द- गिर्द 490 बीसी-180 बीसी के बीच की ईंट की दीवार के संकेत मिल रहे हैं।
- इस सर्वें में 80 सेंटीमीटर से लेकर 2.5 मीटर तक के नीचे अवशेष मिलने के संकेत मिले रहे हैं, जो अलग-अलग डायरेक्शन में हैं। इसमें बेगम की हवेली और बीएनआर ट्रेनिंग कॉलेज के नीचे भी अवशेष के संकेत मिल रहे हैं।
- दरअसल आर्किलोजीकल उत्खनन से पहले जीपीआर सर्वे में ऐतिहासिक अवशेष के सांकेतिक सिंग्लन मिलता है। इसी संकेत के आधार पर आर्किलोजीकल सर्वे ऑफ इंडिया उत्खनन करता है।
- सर्वे में लगी टीम के अनुसार बीएनआर ट्रेनिंग कॉलेज के मैदान के एक मीटर नीचे मल्टीस्ट्रक्चर अवशेष के संकेत मिल रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें, तो एक ऐसी टनल का साक्ष्य मिल रहा है, जो गंगा नदी की तरफ जाती होगी। इस सर्वे के 3डी प्रोफाइल में मौर्यकाल के एक मीटर से लेकर तीन मीटर तक के स्ट्रक्चर दिखाई दे रहे हैं।
- गौरतलब है कि जीपीआर एक भू-भौतिकीय विधि है, जो सतह की छवि के लिये रडार का उपयोग करती है। यह पुरातात्त्विक महत्त्व के स्थलों जैसी भूमिगत उपयोगिताओं की जाँच करने के लिये उप सतह का सर्वेक्षण करने का एक तरीका है। सर्वे की इस अत्याधुनिक तकनीक से बिना खुदाई कराए ज़मीन से 15 मीटर नीचे तक की सभी जानकारियाँ आसानी से मिल जाती हैं। महत्त्वपूर्ण जगहें, जहाँ ऐतिहासिक धरोहरें दबी हो सकती हैं, वहाँ की खुदाई में इनके नष्ट होने का खतरा अधिक रहता है, लेकिन इस सर्वे में किसी तरह का नुकसान नहीं होता है।