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मध्य प्रदेश स्टेट पी.सी.एस.

  • 10 Apr 2024
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शक्ति - संगीत और नृत्य का उत्सव

चर्चा में क्यों?

देश में मंदिर परंपराओं को पुनर्जीवित करने के लिये संगीत नाटक अकादमी, कला प्रवाह की शृंखला के तहत, 9 अप्रैल 2024 से पवित्र नवरात्रि के दौरान 'शक्ति संगीत और नृत्य का उत्सव' शीर्षक के तहत उत्सव का आयोजन कर रही है

मुख्य बिंदु:

शक्ति उत्सव का उद्घाटन कामाख्या मंदिर, गुवाहाटी से शुरू होगा और यह महालक्ष्मी मंदिर, कोल्हापुर, महाराष्ट्र, ज्वालमुखी मंदिर, कंगड़ा, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा सुंदरी, उदयपुर, त्रिपुरा, अंबाजी मंदिर, बनासकांठा, गुजरात, जय दुर्गा शक्तिपीठ, देवघर, झारखंड में जारी रहेगा तथा 17 अप्रैल, 2024 को शक्तिपीठ माँ हरसिधि मंदिर, उज्जैन, मध्य प्रदेश में इसका समापन होगा

संगीत नाटक अकादमी

  • संगीत नाटक अकादमी संगीत, नृत्य और नाटक के लिये भारत की राष्ट्रीय अकादमी है।
  • वर्ष 1952 में (तत्कालीन) शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के एक प्रस्ताव द्वारा डॉ. पी.वी. राजमन्नार को इसके पहले अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया।
  • यह वर्तमान में संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार का एक स्वायत्त निकाय है और इसकी योजनाओं तथा कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के लिये सरकार द्वारा पूरी तरह से वित्तपोषित है।
  • यह संगीत, नृत्य, नाटक, लोक और आदिवासी कला रूपों तथा देश के अन्य संबद्ध कला रूपों के रूप में व्यक्त देश के प्रदर्शन कला रूपों के संरक्षण, अनुसंधान, प्रचार एवं कायाकल्प की दिशा में कार्य कर रहा है


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उज्जैन व्यापार मेले का प्रथम संस्करण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उज्जैन व्यापार मेले का पहला संस्करण संपन्न हुआ, जिसमें एक महीने में 23,700 से अधिक वाहन बेचे गए, जिससे 1,200 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार हुआ।

मुख्य बिंदु:

  • उज्जैन क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (RTO) के अनुसार, 40 दिनों तक चले उज्जैन व्यापार मेले में बेचे गए वाहनों पर कर छूट और राजस्व 125 करोड़ रुपए से अधिक रहा।
    • यह फरवरी 2024 में संपन्न ग्वालियर मेले में दी गई कर छूट से 20% अधिक है।
  • राज्य सरकार ने उज्जैन विक्रम व्यापार मेले में गैर-परिवहन वाहनों और हल्के परिवहन वाहनों की बिक्री पर आजीवन मोटर वाहन कर की दर में 50% की छूट की पेशकश की थी।
    •  गैर-परिवहन हल्के मोटर वाहन कार की तरह निजी उपयोग के लिये होते हैं, जबकि हल्के परिवहन मोटर वाहनों का उपयोग यात्रियों और सामान ले जाने के लिये किया जाता है।


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गुड़ी पड़वा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोगों ने हिंदू नववर्ष की शुरुआत के प्रतीक गुड़ी पड़वा के शुभ अवसर को खुशी और धार्मिक उत्साह के साथ मनाया।

मुख्य बिंदु:

  • नौ दिवसीय चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को भी श्रद्धालु निकले:
  • यह विक्रम संवत के नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक है जिसे वैदिक [हिंदू] कैलेंडर के रूप में भी जाना जाता है।
  • विक्रम संवत् उस दिन पर आधारित है जब सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को हराया, उज्जैन पर आक्रमण किया और एक नए युग का आह्वान किया।
  • उनकी देखरेख में, खगोलविदों ने चंद्र-सौर प्रणाली पर आधारित एक नया कैलेंडर बनाया जिसका पालन आज भी भारत के उत्तरी क्षेत्रों में किया जाता है।
  • यह चैत्र (हिंदू कैलेंडर का पहला महीना) में चंद्रमा के बढ़ते चरण (जिसमें चंद्रमा का दृश्य भाग हर रात बड़ा होता जा रहा है) के दौरान पहला दिन है।
  • यह चैत्र (हिंदू कैलेंडर का प्रथम महीना) में चंद्रमा के बढ़ते चरण/शुक्ल पक्ष (जिसमें चंद्रमा का दृश्य भाग हर रात बड़ा होता जा रहा है) के दौरान प्रथम दिन है।

गुड़ी पड़वा और उगादि

  • तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के लोग नववर्ष को उगादी के रूप में मनाते हैं जबकि महाराष्ट्र तथा गोवा इस दिन का जश्न गुड़ी पड़वा के साथ मनाते हैं।
  • दोनों त्योहारों/समारोहों में आम प्रथा है कि उत्सव में भोजन मीठे और कड़वे मिश्रण से तैयार किया जाता है।
  • दक्षिण में बेवु-बेला नामक गुड़ (मीठा) और नीम (कड़वा) परोसा जाता है, जो यह दर्शाता है कि जीवन सुख तथा दुख का मिश्रण है।
  • गुड़ी महाराष्ट्र के घरों में तैयार की जाने वाली एक गुड़िया है।
    • गुड़ी बनाने के लिये बाँस की छड़ी को हरे या लाल ब्रोकेड से सजाया जाता है। इस गुड़ी को प्रमुख रूप से घर में या खिड़की/दरवाज़े के बाहर सभी को दिखाने के लिये से रखा जाता है।
  • उगादि के लिये घरों में दरवाज़े आम के पत्तों से सजाए जाते हैं, जिन्हें कन्नड़ में तोरणालु या तोरण कहा जाता है।


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