झारखंड Switch to English
IIT (ISM) के वैज्ञानिकों ने भूजल से आर्सेनिक को हटाने के लिये अवशोषक विकसित किया
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक शोध में आईआईटी (आईएसएम) धनबाद के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे अवशोषक (adsorbent) के विकास में सफलता हासिल की है, जो भूजल से आर्सेनिक को हटाने में मदद करता है।
प्रमुख बिंदु
- पर्यावरण विज्ञान इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. एस.आर. समद्दर के नेतृत्व में शोधकर्त्ताओं की चार सदस्यीय टीम का दावा है कि कैल्सीनेटेड लैटेराइट मिट्टी आर्सेनिक पर नैनो मैंगनीज के लेप के माध्यम से आर्सेनिक को हटाया जा सकता है।
- शोधार्थी रोशन प्रभाकर और एमटेक के दो छात्र सोमपर्णा घोष और अली ने इस शोध में मदद की।
- डॉ. समद्दर ने बताया कि आर्सेनिक को प्रथम श्रेणी के मानव कार्सिनोजेन के रूप में पहचाना गया है और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पीने के पानी में इसकी अनुमेय सीमा (permissible limit) 10 माइक्रोग्राम प्रति लीटर निर्धारित की है।
- डॉ. समद्दर ने बताया कि हमने ग्रामीण इलाकों में रहने वाले संसाधन से वंचित समुदाय के लिये एक सोखना आधारित स्केलेबल उपचार प्रणाली (adsorption based scalable treatment system) विकसित की है।
- उन्होंने कहा कि नैनो आधारित सोखना प्रणाली आर्सेनिक आयनों को हटाने के लिये शोधकर्त्ताओं के बीच लोकप्रिय रही है, लेकिन चूँकि नैनो सोखने वालों को संश्लेषित करना महँगा है, इसलिये इस शोध में नैनो कोटिंग के लिये आधार सामग्री के रूप में सस्ती और आसानी से उपलब्ध लैटेराइट मिट्टी उपयोग किया गया है।
- डॉ. समद्दर ने बताया कि 200 पीपीबी सांद्रता वाले 1000 लीटर पानी के उपचार के लिये लगभग 0.70 किलोग्राम लैटेराइट नैनो मैंगनीज की आवश्यकता होती है, जिसमें से अधिकांश हिस्से में लैटेराइट मिट्टी के कण होते हैं। यह प्रतिशत के आधार पर देश के विभिन्न हिस्सों में भूजल से आर्सेनिक को हटाने में मदद कर सकता है।
Switch to English