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छत्तीसगढ स्टेट पी.सी.एस.

  • 08 Nov 2022
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कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में पहली बार होगा पक्षी सर्वेक्षण

चर्चा में क्यों?

7 नवंबर, 2022 को कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान निदेशक धम्मशील गणविर ने बताया कि बर्ड कॉउंट इंडिया एवं बर्ड्स एंड वाइल्ड लाइफ ऑफ छत्तीसगढ़ के सहयोग से बस्तर अंचल स्थित कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में पहली बार पक्षियों का सर्वेक्षण किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • निदेशक धम्मशील गणविर ने बताया कि कांगेर घाटी पक्षी सर्वेक्षण का कार्य 25 नवंबर से 27 नवंबर, 2022 तक किया जाएगा। इस पक्षी सर्वेक्षण में देश के 11 राज्यों के 56 पक्षी विशेषज्ञों का चयन किया गया है।
  • छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, गुजरात, केरल, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, राजस्थान से प्रतिभागी इस पक्षी सर्वेक्षण में शामिल होंगे।
  • तीन दिनों तक पक्षी विशेषज्ञ कांगेर घाटी के अलग-अलग पक्षी रहवासों का निरीक्षण कर यहाँ पाए जाने वाले पक्षियों का सर्वेक्षण करेंगे। देश के विभिन्न परिदृश्यों में पाए जाने वाले पक्षियों का कांगेर घाटी से संबंध एवं उनके रहवास को समझने का प्रयास समय-समय पर विशेषज्ञों द्वारा किया गया है।
  • इस सर्वेक्षण से राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन में सहायता होगी तथा ईको-टूरिज्म में बर्ड वॉचिंग के नए आयाम सम्मिलित होंगे।
  • उल्लेखनीय है कि कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान, जगदलपुर मध्य भारत के जैव-विविधता का एक अनोखा खजाना है। कांगेर घाटी अपने प्राकृतिक सौंदर्य, जैव-विविधता, रोमांचक गुफाओं के लिये देश-विदेश में विख्यात है। यहाँ भारत के पश्चिमी घाट एवं पूर्वी हिमालय में पाए जाने वाले पक्षियों को भी देखा गया है।

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छत्तीसगढ़ में किसानों को लाख की खेती के लिये प्रोत्साहित करने की विशेष पहल

चर्चा में क्यों?

7 नवंबर, 2022 को छत्तीसगढ़ जनसंपर्क विभाग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश के अनुरूप छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार द्वारा किसानों को लाख की खेती के लिये प्रोत्साहित करने और उनकी आय में वृद्धि हेतु विशेष पहल की जा रही है।

प्रमुख बिंदु

  • इसके परिपालन में छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा बीहन लाख आपूर्ति तथा बीहन लाख विक्रय और लाख फसल ऋण की उपलब्धता के लिये मदद सहित आवश्यक व्यवस्था की गई है।
  • राज्य में योजना के सफल क्रियान्वयन और लाख उत्पादन में वृद्धि करने के लिये 20 ज़िला यूनियनों में 3 से 5 प्राथमिक समिति क्षेत्र को जोड़ते हुए लाख उत्पादन क्लस्टर का गठन भी किया गया है।
  • इसके तहत प्रत्येक लाख उत्पादन क्लस्टर में सर्वेक्षण कर कृषकवार बीहन लाख की मांग की जानकारी ली जाएगी। इनमें कृषकों को संघ द्वारा निर्धारित मूल्य पर बीहन लाख प्रदाय करने हेतु आवश्यक कुल राशि को अग्रिम रूप से ज़िला यूनियन खाते में जमा कराना होगा।
  • इसके तहत रंगीनी बीहन लाख के लिये कृषकों से मांग प्राप्त करने हेतु समय-सीमा 10 नवंबर के पूर्व निर्धारित है। इसमें कृषकों से राशि जमा किये जाने हेतु समय-सीमा 15 नवंबर तक निर्धारित है। इनमें कुसुमी बीहन लाख के लिये कृषकों से मांग प्राप्त करने हेतु 30 नवंबर के पूर्व तथा राशि जमा किये जाने हेतु 15 दिसंबर तक समय-सीमा निर्धारित है।
  • राज्य में बीहन लाख की कमी को दूर करने हेतु कृषकों के पास उपलब्ध बीहन लाख को उचित मूल्य पर क्रय करने के लिये क्रय दर का निर्धारण किया गया है। इसके तहत कुसुमी बीहन लाख (बेर वृक्ष से प्राप्त) के लिये कृषकों को देय क्रय दर 550 रुपए प्रति किलोग्राम तथा रंगीनी बीहन लाख (पलाश वृक्ष से प्राप्त) के लिये कृषकों को देय क्रय दर 275 रुपए प्रति किलोग्राम निर्धारित है।
  • इसी तरह कृषकों को बीहन लाख उपलब्ध कराने हेतु विक्रय दर का भी निर्धारण किया गया है। इसके तहत कुसुमी बीहन लाख (बेर वृक्ष से प्राप्त) के लिये कृषकों को देय विक्रय दर 640 रुपए प्रति किलोग्राम और रंगीनी बीहन लाख (पलाश वृक्ष से प्राप्त) के लिये कृषकों को देय विक्रय दर 375 रुपए प्रति किलोग्राम निर्धारित है।
  • राज्य सरकार द्वारा किसानों को लाख की खेती के लिये प्रोत्साहित करने हेतु ज़िला सहकारी बैंक के माध्यम से लाख फसल ऋण नि:शुल्क ब्याज के साथ प्रदाय करने की व्यवस्था की गई है। इसके तहत लाख पालन करने हेतु पोषक वृक्ष कुसुम पर 5 हज़ार रुपए, बेर पर 900 रुपए तथा पलाश पर 500 रुपए प्रति वृक्ष ऋण सीमा निर्धारित है।
  • लाख पालन को वैज्ञानिक पद्धति से करने हेतु राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा कांकेर में प्रशिक्षण केंद्र खोला गया है। इस केंद्र में 3 दिवसीय संस्थागत प्रशिक्षण के साथ लाख उत्पादन क्लस्टर में ऑनफार्म प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
  • लाख पालन की अच्छी खेती के लिये कुसुम वृक्ष गर्मी के मौसम में अत्यंत उपयुक्त है, परंतु वर्षा ऋतु में बेर वृक्ष कुसुमी लाख पालन हेतु उपयुक्त है। अतएव कुसुम वृक्षों से आच्छादित क्षेत्रों में मीठा बेर रोपण कर वर्ष में 2 फसल लेते हुए अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है। इसके मद्देनज़र राज्य में कुसुम समृद्ध क्षेत्रों में कृषकों की मेड़ तथा निजि भूमि पर बृहद स्तर पर मीठा बेर रोपण हेतु वन विभाग द्वारा प्रयास किया जा रहा है।
  • राज्य में लाख पालन में वृद्धि हेतु तेंदूपत्ता संग्राहक परिवार के युवा सदस्य, जो 12वीं उत्तीर्ण हैं, उन्हें ‘वनधन मित्र’ के रूप में चयन कर लाख कृषक सर्वेक्षण, प्रशिक्षण, बीहन लाख व्यवस्था तथा फसल ऋण प्रदायगी आदि में उचित मानदेय पर उपयोग किया जा रहा है। वर्तमान में लगभग 200 वनधन मित्र (लाख) द्वारा विभिन्न ज़िला यूनियनों में अपनी सेवाएँ लाख कृषकों को प्रदान की जा रही है।
  • गौरतलब है कि राज्य के विभिन्न ज़िलों में परंपरागत रूप से लाख की खेती होती है और लगभग 50 हज़ार कृषकों द्वारा कुसुम एवं बेर वृक्षों पर कुसुमी लाख, पलाश एवं बेर वृक्षों पर रंगीनी लाख पालन किया जाता है।
  • राज्य में वर्तमान में 4 हज़ार टन लाख का उत्पादन होता है, जिसका अनुमानित मूल्य राशि 100 करोड़ रुपए है। राज्य में लाख उत्पादन को 10 हज़ार टन तक बढ़ाते हुए 250 करोड़ रुपए की आय कृषकों को देने का लक्ष्य है। इसके लिये लाख पालन करने वाले कृषकों को नि:शुल्क ब्याज के साथ लाख फसल ऋण देने का अहम निर्णय लिया गया है।
  • संपूर्ण देश में लाख उत्पादन में गिरावट के कारण वर्तमान में कुसुमी लाख का बाज़ार दर 300 रुपए से 900 रुपए प्रति किलोग्राम तक वृद्धि हुई है। इससे लाख खेती बढ़ाने हेतु किसानों का रुझान बढ़ रहा है।

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वैज्ञानिकों ने छत्तीसगढ़ की धान की छह प्रजातियों के म्यूटेंट में किया बदलाव

चर्चा में क्यों?

6 नवंबर, 2022 को भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के पब्लिक अवेयरनेस डिवीजन के अध्यक्ष डॉक्टर आरके वत्स ने बताया कि सेंटर के वैज्ञानिकों ने छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली धान की छह प्रजातियों के म्यूटेंट में बदलाव कर पौधों की ऊँचाई कम कर दी है। ऐसे में बरसात, ओलावृष्टि और आंधी का फसलों पर खास असर नहीं पड़ेगा।

प्रमुख बिंदु

  • विदित है कि देहरादून के उत्तरांचल विवि में आयोजित आकाश तत्त्व सम्मेलन में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों की ओर से धान की नई प्रजातियों की प्रदर्शनी लगाई गई है। पहले चरण में संस्थान के वैज्ञानिकों ने छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली धान की छह प्रजातियों के म्यूटेंट में बदलाव किया है।
  • इसी प्रकार वैज्ञानिकों ने मूंग की आठ प्रजातियों के म्यूटेंट में भी बदलाव कर नई प्रजातियाँ बनाई हैं।
  • छत्तीसगढ़ सरकार के अनुरोध पर जिन प्रजातियों का म्यूटेंट बदलकर नई प्रजातियाँ विकसित की गई हैं, उनमें सीजी जवाफूल, टीकेआर कोलम, ट्रॉम्बे छत्तीसगढ़ सोनागाक्षी म्यूटेंट (टीसीबीएम), ट्रांबे छत्तीसगढ़ दूबराज म्यूटेंट (टीसीडीएम) विक्रम टीसीआर, ट्रांबे छत्तीसगढ़ विष्णुभोग म्यूटेंट (टीसीवीएम) शामिल हैं।
  • सेंटर के वैज्ञानिक डॉ. आरके वत्स के मुताबिक, गामा रेडिएशन के ज़रिये धान की प्रजातियों के म्यूटेंट में बदलाव किया गया है। इसके बाद नई प्रजाति के धान को विकसित किया गया, जो पहले वाले की तुलना में अलग है।
  • गौरतलब है कि देश में धान की करीब 40 हज़ार प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें सबसे अधिक 23230 प्रजातियाँ धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में पाई जाती हैं।

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