इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

हरियाणा स्टेट पी.सी.एस.

  • 07 Feb 2023
  • 0 min read
  • Switch Date:  
हरियाणा Switch to English

36 वें अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड क्राफ्ट मेले में विरासत सांस्कृतिक प्रदर्शनी में ‘हरियाणवी पगड़ी’ पर्यटकों के लिये विशेष आकर्षण का केंद्र बनी

चर्चा में क्यों?

6 फरवरी, 2023 को हरियाणा के फरीदाबाद में आयोजित किये जा रहे 36वें अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड क्राफ्ट मेले में विरासत सांस्कृतिक प्रदर्शनी में ‘हरियाणवी पगड़ी’पर्यटकों के लिये विशेष आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।

प्रमुख बिंदु

  • हरियाणा का ‘आपणा घर’में विरासत की ओर से जो सांस्कृतिक प्रदर्शनी लगाई गई है, वहाँ पर ‘पगड़ी बंधाओ, फोटो खिंचाओ’के माध्यम से बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक हरियाणा की पगड़ी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है।
  • विरासत के निदेशक डॉ. महासिंह पूनिया ने बताया कि हरियाणा की पगड़ी को अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड क्राफ्ट मेले में खूब लोकप्रियता हासिल हो रही है। पर्यटक पगड़ी बांधकर हुक्के के साथ सेल्फी, हरियाणवी झरोखे से सेल्फी, हरियाणवी दरवाजों के साथ सेल्फी, आपणा घर के दरवाजों के साथ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया के माध्यम से हरियाणा की लोक सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक पगड़ी खूब लोकप्रियता हासिल कर रही है।
  • महासिंह पूनिया ने बताया कि उद्घाटन के अवसर पर भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ तथा हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने भी हरियाणवी पगड़ी बांधकर सूरजकुंड मेले का उद्घाटन किया था। पगड़ी की परंपरा का इतिहास हज़ारों वर्ष पुराना है। पगड़ी जहाँ एक ओर लोक सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ी हुई है, वहीं पर सामाजिक सरोकारों से भी इसका गहरा नाता है।
  • हरियाणा के खादर, बांगर, बागड़, अहीरवाल, बृज, मेवात, कौरवी क्षेत्र सभी क्षेत्रों में पगड़ी की विविधता देखने को मिलती है। प्राचीन काल में सिर को सुरक्षित ढंग से रखने के लिये पगड़ी का प्रयोग किया जाने लगा।
  • पगड़ी को सिर पर धारण किया जाता है। इसलिये इस परिधान को सभी परिधानों में सर्वोच्च स्थान मिला। पगड़ी को लोकजीवन में पग, पाग, पग्गड़, पगड़ी, पगमंडासा, साफा, पेचा, फेंटा, खंडवा, खंडका आदि नामों से जाना जाता है, जबकि साहित्य में पगड़ी को रूमालियो, परणा, शीशकाय, जालक, मुरैठा, मुकुट, कनटोपा, मदील, मोलिया और चिंदी आदि नामों से जाना जाता है। 
  • वास्तव में पगड़ी का मूल ध्येय शरीर के ऊपरी भाग (सिर) को सर्दी, गर्मी, धूप, लू, वर्षा आदि विपदाओं से सुरक्षित रखना रहा है, किंतु धीरे-धीरे इसे सामाजिक मान्यता के माध्यम से मान और सम्मान के प्रतीक के साथ जोड़ दिया गया, क्योंकि पगड़ी शिरोधार्य है। यदि पगड़ी के अतीत के इतिहास में झाँक कर देखें तो अनादिकाल से ही पगड़ी को धारण करने की परंपरा रही है। 

 Switch to English
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2