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छत्तीसगढ स्टेट पी.सी.एस.

  • 06 Oct 2023
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छत्तीसगढ़ Switch to English

बस्तर की देवगुड़ियाँ और मातागुड़ियाँ हुई लिपिबद्ध

चर्चा में क्यों?

5 अक्टूबर, 2023 को छत्तीसगढ़ जनसंपर्क विभाग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार राज्य शासन की मंशानुरूप छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल बस्तर अंचल के आदिवासियों के विरासत में आस्था का केंद्र देवगुड़ियों-मातागुड़ियों को संरक्षित एवं संवर्धित करने की दिशा में बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के द्वारा इन देवगुड़ियों-मातागुड़ियों को लिपिबद्ध किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • विदित है कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल बस्तर अंचल में सदियों से अनेक जनजातीय समुदाय निवासरत हैं। इन जनजातीय समुदायों की अपनी अलग सांस्कृतिक विरासत है। आदिवासियों के विरासत में आस्था का केंद्र देवगुड़ी-मातागुड़ी है, जिसकी जनजातीय समुदायों में अपनी महत्ता है।
  • बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के द्वारा विभिन्न मदों के अभिसरण से इन देवगुड़ियों-मातागुड़ियों का जीर्णोद्धार करने सहित उन्हें सँवारने के लिये व्यापक पहल की गई है।
  • जनजातीय समुदाय के अधिकांश समूह प्रकृति पूजक हैं, वे पेड़-पौधों में अपने देवी-देवताओं का वास मानते हैं और इसी आस्था के फलस्वरूप वनों को बचाने के लिये अहम भूमिका निभा रहे हैं। यही वजह है कि इन देवस्थलों पर बहुतायत मात्रा में पेड़-पौधे पाए जाते हैं।
  • इन देवस्थलों के परिसरों में वृहद स्तर पर फलदार एवं छायादार पौधरोपण किया जा रहा है। इसके साथ ही उत्त देवस्थलों का सामुदायिक वनाधिकार मान्यता पत्र प्रदान कर देवगुड़ियों एवं मातागुड़ियों सहित गोटुल एवं प्राचीन मृतक स्मारकों के भूमि को संरक्षित करने के उद्देश्य से संबंधित देवी-देवताओं के नाम से भूमि को राजस्व अभिलेख में दर्ज किया गया है।
  • वहीं इन देवगुड़ियों-मातागुड़ियों और गोटुल एवं प्राचीन मृतक स्मारकों को उनके नाम से सामुदायिक वनाधिकार मान्यता पत्र जारी किया गया है, ताकि इन सांस्कृतिक-सामाजिक धरोहरों के परिसरों को अवैध कब्जा से बचाया जा सके। साथ ही इन धरोहरों के संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में स्थानीय जनजातीय समुदाय की सहभागिता सुनिश्चित किया जा सके।
  • देश में पहली बार छत्तीसगढ़ राज्य एवं बस्तर संभाग देश का ऐसा संभाग है, जो आदिवासी समुदायों की आस्था एवं जीवित परंपराओं के केंद्र मातागुडी, देवगुडी, गोटूल, प्राचीन मृतक स्मारक, सेवा-अर्जी स्थल आदि के संरक्षण, संवर्धन तथा परिरक्षण के लिये प्रतिबद्ध है।
  • अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम के तहत देवी-देवताओं के नाम से ग्राम सभा को 2453 सामुदायिक वनाधिकार पत्र प्रदान किये गए हैं। इनमें कुल 7075 मातागुडी, देवगुडी, गोटूल, प्राचीन मृतक स्मारक के लिये 2607.20 हेक्टेयर (6466 एकड़) भूमि राजस्व अभिलेखों में प्रविष्टि कर संरक्षित किया गया है।
  • बस्तर संभाग में कुल 22884 बैगा, सिरहा, मांझी, गुनिया, गायता, पुजारी, बजनिया, अटपहरिया आदि को राजीव गांधी भूमिहीन कृषक मजदूर न्याय योजना अंतर्गत पंजीकृत करके प्रत्येक को प्रतिवर्ष 7000 रुपए प्रदान किया जा रहा है।
  • बस्तर में क्षेत्रवार आदिवासी समुदायों के देवी-देवताओं की वाचिक परंपरा में प्रचलित मान्यताओं को लेखबद्ध कर उन्हें जारी किये गए सामुदायिक वन अधिकार के प्रपत्रों को संकलित कर ‘पुरखती कागजात’नामक (भाग एक) पुस्तिका तैयार की गई है। ‘पुरखती कागजात’(भाग-दो) में संरक्षित खसरों का संकलन है, जिसमें भुईया के माध्यम से खसरे के कैफियत कॉलम में मातागुडी, देवगुड़ी के नाम व रकबा उल्लेखित कर राजस्व अभिलेख संरक्षित किया गया है।
  • बस्तर अंचल की आस्था और सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में 6283 देवगुड़ी और मातागुड़ी में से 3244 का जीर्णोद्धार की स्वीकृति दी गई है और अब तक 2320 देवगुड़ी एवं मातागुड़ियों का जीर्णोद्धार कार्य पूर्ण किया जा चुका है। वहीं स्वीकृत 297 गोटुल निर्माण कार्यों में से 200 कार्यो को पूर्ण किया गया है।
  • बस्तर संभाग के अंतर्गत कुल 7075 देवगुड़ियों एवं मातागुड़ियों सहित गोटुल एवं प्राचीन मृतक स्मारकों में से 3619 देवगुड़ी-मातागुड़ी और गोटुल एवं मृतक स्मारक राजस्व, गैर वनभूमि, निजी भूमि तथा अन्य मदों की भूमि पर अवस्थित हैं, जिससे 898 हेक्टेयर रकबा भूमि संरक्षित है।
  • वहीं शेष सभी 3456 देवगुड़ियों-मातागुड़ियों और घोटुल एवं प्राच्य मृतक स्मारकों का सामुदायिक वनाधिकार मान्यता पत्र समुदाय को प्रदान कर करीब 1709 हेक्टेयर रकबा भूमि संरक्षित किया गया है। लगभग 6466 एकड़ राजस्व भूमि को देव-मातागुड़ी के रूप में संरक्षित किया गया है।
  • बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण-
    • बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण का गठन राज्य शासन द्वारा 27 फरवरी, 2019 को किया गया था। इसके अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष तथा सदस्य स्थानीय जनप्रतिनिधियों को बनाया गया है।
    • प्राधिकरण का मुख्य उद्देश्य बस्तर क्षेत्र में आदिवासियों की संस्कृति का परिरक्षण, संवर्धन एवं संरक्षण करना है, इस प्राधिकरण के अंतर्गत क्षेत्र तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास के लिये अन्य कार्य स्वीकृत किये जा रहे हैं।
    • प्राधिकरण अंतर्गत संभाग के बस्तर, कोंडागाँव, नारायणपुर, कांकेर, दंतेवाड़ा, बीजापुर एवं सुकमा ज़िले समाहित हैं।

  


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