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छत्तीसगढ स्टेट पी.सी.एस.

  • 05 Apr 2023
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अब केरल की तर्ज पर छत्तीसगढ़ में भी होगी रबर की खेती

चर्चा में क्यों?

3 अप्रैल, 2023 को छत्तीसगढ़ के रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय तथा रबर अनुसंधान संस्थान कोटेायम (केरल) के मध्य एक समझौता किया गया है, जिसके तहत रबर अनुसंधान संस्थान, कोट्टायम छत्तीसगढ़ में रबर की खेती की संभावनाएँ तलाशने के लिये कृषि अनुसंधान केंद्र बस्तर में एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में रबर की प्रायोगिक खेती करेगा। 

प्रमुख बिंदु 

  • समझौता ज्ञापन पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के संचालक (अनुसंधान) डॉ. विवेक कुमार त्रिपाठी तथा रबर रिसर्च इंस्टीट्यूट कोट्टायम की संचालक (अनुसंधान) डॉ. एम.डी. जेस्सी ने हस्ताक्षर किये।
  • इस समझौते के अनुसार रबर इंस्टीट्यूट कृषि अनुसंधान केंद्र बस्तर में एक हेक्टेयर रकबे में रबर की खेती हेतु सात वर्षों की अवधि के लिये पौध सामग्री, खाद-उर्वरक, दवाएँ तथा मज़दूरी पर होने वाला व्यय इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय को उपलब्ध कराएगा। वह रबर की खेती के लिये आवश्यक तकनीकी मार्गदर्शन तथा रबर निकालने की तकनीक भी उपलब्ध कराएगा।
  • पौध प्रबंधन का कार्य रबर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किया जाएगा।
  • इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने कहा कि रबर एक अधिक लाभ देने वाली फसल है। भारत में केरल, तमिलनाडु आदि दक्षिणी राज्यों में रबर की खेती ने किसानों को संपन्न बनाने में अहम भूमिका निभाई है।
  • उन्होंने कहा कि रबर अनुसंधान संस्थान कोट्टायम के वैज्ञानिकों ने छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र की मिट्टी, आबोहवा, भू-पारिस्थितिकी आदि को रबर की खेती के लिये उपयुक्त पाया है और प्रायोगिक तौर पर एक हेक्टेयर क्षेत्र में रबर के पौधों का रोपण किया जाएगा। यहाँ रबर की खेती से किसानों को अधिक आमदनी प्राप्त हो सकेगी।


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‘अंगना म शिक्षा’कार्यक्रम को मिला ‘स्कॉच अवार्ड’

चर्चा में क्यों?

3 अप्रैल, 2023 को छत्तीसगढ़ जनसंपर्क विभाग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ में कोविड लॉकडाउन के दौरान महिला शिक्षिकाओं की पहल पर प्रारंभ किये गए ‘अंगना में शिक्षा’कार्यक्रम को किसी स्वतंत्र संगठन द्वारा दिया जाने वाला भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान वर्ष 2022 के ‘स्कॉच अवार्ड’से नवाज़ा गया है।

प्रमुख बिंदु 

  • इस अवार्ड के माध्यम से उन परियोजनाओं को सम्मानित किया जाता है, जो देश को बेहतर राष्ट्र बनाने के लिये प्रयास करते हैं।
  • ‘अंगना म शिक्षा’को छत्तीसगढ़ के गाँव-गाँव में पहुँचाए जाने हेतु कार्यक्रम डिजाइन कर क्रियान्वयन के लिये महिला शिक्षिकाओं की एक कोर टीम का गठन किया गया है, जिसमें सभी पाँच संभागों से प्रतिनिधित्व किया गया है।
  • यह शिक्षिकाएँ विगत तीन वर्षों से इस कार्यक्रम की डिजाइन कर इसमें निरंतर सुधार लाने का प्रयास कर रही हैं। प्रत्येक गाँव में सबसे पहले ‘अंगना म शिक्षा’ मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें स्थानीय शिक्षिकाएँ समुदाय, आँगनबाड़ी कार्यकर्त्ता एवं बड़ी कक्षाओं की बालिकाओं को शामिल किया जाता है।
  • मेले में अलग-अलग काउंटर होते हैं, जिसमें माताएँ अपने बच्चों का आकलन करवाते हुए घर पर सीखने-सिखाने की प्रक्रिया पर समझ बनाती हैं। मुख्य रूप से टेढ़े-मेढे लाईन पर चलना, चित्रों में रंग भरना, कागज से विभिन्न आकृतियाँ बनाना, वस्तुओं का वर्गीकरण करना एवं उन्हें क्रम से जमाना, कहानी सुनाना, चित्र देखकर उसका वर्णन करना, गिनती, मौखिक जोड़-घटाना जैसी गतिविधियों का आयोजन करवाया जाता है।
  • मेले से सीखकर एवं शिक्षिकाओं द्वारा समय-समय पर उन्मुखीकरण करने से माताएँ बच्चों को घर पर सीखने में सहयोग देना प्रारंभ कर देती हैं।
  • इस कार्यक्रम में बेहतर और सक्रिय होकर कार्य कर रही माताओं को गाँव में पहचान दिलाने एवं उन्हें अन्य माताओं को इस कार्यक्रम से जोड़ने हेतु ‘स्मार्ट माता’का खिताब देकर सम्मानित भी किया जाता है।
  • स्मार्ट माताओं से यह अपेक्षा भी की जाती है कि वे अन्य माताओं को सक्रिय करते हुए स्कूल एवं आँगनबाड़ी में भी जाकर बच्चों की पढ़ाई में सुधार की दिशा में पहल करें।
  • बच्चों को स्कूल में नए सत्र में प्रवेश के लिये जाते समय माताएँ अपने साथ एक सपोर्ट कार्ड भी लेकर जाती हैं, जिसमें वे बच्चों के दक्षता की वर्तमान स्थिति का आकलन कर स्वयं हस्ताक्षर कर यह सूचित करती है कि उन्होंने अपने बच्चों को इन दक्षताओं को हासिल करवा दिया है, अब इसके आगे सिखाने में सहयोग दें।
  • आगामी सत्र में प्रवेश के पूर्व सभी गाँवों में इस कार्यक्रम के अंतर्गत अगले चरण हेतु प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन के साथ मिलकर महिला शिक्षिकाओं द्वारा तय किये जा रहे हैं। इस वर्ष ‘अंगना म शिक्षा’दिवस एवं माताओं का अपने बच्चों के साथ सेल्फी लेने का भी प्रस्ताव है। 


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