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उत्तराखंड में लगेंगे 25 हज़ार MSME उद्योग
चर्चा में क्यों?
2 अप्रैल, 2023 को मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार उत्तराखंड में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने और रोज़गार के नए अवसर सृजित करने के लिये राज्य सरकार ने पाँच साल का रोडमैप तैयार किया है, जिसके अंतर्गत 25 हज़ार सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है।
प्रमुख बिंदु
- सशक्त उत्तराखंड के लिये अमेरिका की कंपनी मैकेंजी ग्लोबल ने राज्य में औद्योगिक विकास का रोडमैप बनाया है। योजना के तहत प्रदेश में 7500 करोड़ का निवेश होगा। इससे एक लाख लोगों को रोज़गार देने का लक्ष्य रखा गया है।
- निवेश को बढ़ावा देने लिये ईज आफ डूईंग बिजनेस, ज़िला स्तर पर निवेश के लिये अवस्थापना विकास, मार्केटिंग और ब्रांडिंग में सहयोग और निवेशकों को प्रोत्साहन देने पर सरकार का फोकस रहेगा।
- मैकेंजी ग्लोबल की ओर से निवेश को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहन के तौर पर सब्सिडी की सिफारिश की गई है। इसमें पर्वतीय क्षेत्रों में लगने वाले नए सूक्ष्म उद्योगों को 75 प्रतिशत (अधिकतम 75 लाख), लघु उद्योगों को 40 प्रतिशत (अधिकतम चार करोड़), मध्यम उद्योगों को 20 प्रतिशत (अधिकतम 10 करोड़) तक सब्सिडी देने की सिफारिश की गई है।
- राज्य के ऊधमसिंह नगर ज़िले के प्रयाग फार्म के पास एक हज़ार एकड़ ज़मीन पर अमृतसर-कोलकाता इंडस्ट्रियल कॉरिडोर औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने की योजना है, जो पंतनगर और रुद्रपुर से काफी नज़दीक है। यहाँ बड़े उद्योग लगाने के लिये ज़मीन उपलब्ध होगी।
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प्रदेश में वाइब्रेंट गाँवों की संख्या में होगा इजाफा
चर्चा में क्यों?
1 अप्रैल, 2023 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बताया कि केंद्र सरकार के वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम के तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय आने वाले दिनों में उत्तराखंड के और नए सीमांत गाँवों को शामिल करेगा।
प्रमुख बिंदु
- विदित है कि केंद्र सरकार ने सीमांत गाँव नीति, माणा, मलारी और गुंजी को वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम में शामिल किया है। इन गाँवों के विकास के लिये केंद्र सरकार सहयोग करेगी।
- मुख्यमंत्री सीमांत गाँव विकास योजना के तहत भी सीमांत गाँवों में पर्यटन और आर्थिकी गतिविधियों को बढ़ाया जाएगा।
- उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने माणा को प्रथम गाँव की संज्ञा दी है।
- मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश सरकार की कोशिश है कि चारधाम यात्रा पर आने वाले पर्यटक सीमांत गाँव तक जाएं और अपने यात्रा खर्च का पाँच फीसदी इन गाँवों के स्थानीय उत्पादों पर खर्च करें।
- सीमांत गाँवों को उनकी विशिष्टता के अनुरूप विकसित किया जाए और उनका प्रचार-प्रसार हो, ताकि ज्यादा से ज्यादा पर्यटक वहाँ पहुँचे। इससे वहाँ के स्थानीय लोगों की आर्थिकी में सुधार स्थिति होगा और पलायन की समस्या भी कम होगी।
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