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सरकारी नौकरियों में सामाजिक-आर्थिक मानदंड असंवैधानिक
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की नौकरियों में कुछ वर्गों के उम्मीदवारों को अतिरिक्त अंक देने के लिये हरियाणा सरकार द्वारा निर्धारित सामाजिक-आर्थिक मानदंड को असंवैधानिक घोषित कर दिया तथा इसे खारिज कर दिया।
- न्यायालय ने फैसला सुनाया कि यह मानदंड भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन करता है।
मुख्य बिंदु:
- हरियाणा सरकार ने कुछ श्रेणियों के उम्मीदवारों को अतिरिक्त अंक प्रदान करने के लिये सामाजिक-आर्थिक मानदंड पेश किये थे, इसमें वे उम्मीदवार शामिल हैं जिनके परिवार का कोई सदस्य सरकारी नौकरियों में नहीं है, राज्य के मूल निवासी और जिनके परिवार की वार्षिक आय 1.80 लाख रुपए से अधिक नहीं है।
- याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि:
- मानदंड निवास और वंश के आधार पर भेदभाव करते हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 162 के तहत निषिद्ध चिह्न हैं।
- याचिकाकर्त्ता का तर्क है कि जब आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS), अनुसूचित जाति (SC) और पिछड़ा वर्ग (BC) के लिये आरक्षण पहले से ही प्रदान किया गया है, तो किसी विशेष वर्ग को अतिरिक्त अंक देने का कोई औचित्य नहीं है।
नोट:
- अनुच्छेद 14: किसी भी व्यक्ति को भारत के राज्यक्षेत्र में विधि के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा।
- अनुच्छेद 15: किसी भी नागरिक के साथ केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद नहीं किया जाएगा।
- अनुच्छेद 16: किसी भी सार्वजनिक पद पर नियोजन या नियुक्ति के मामले में सभी नागरिकों के लिये अवसर की समानता प्रदान करता है।
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