वन महोत्सव कार्यक्रम | 21 Aug 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में छत्तीसगढ़ वन विभाग ने मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर (MCB) ज़िले में मियावाकी पद्धति से पौधे लगाकर वन महोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया।
प्रमुख बिंदु
- पाँच अलग-अलग स्थानों पर करीब 6,000 पौधे रोपे गए। मियावाकी तकनीक अपनाने के पीछे मुख्य उद्देश्य नगरीय ऊष्मा द्वीपों और प्रदूषण को कम करना है।
- मियावाकी विधि:
- इसका नाम जापानी वनस्पतिशास्त्री अकीरा मियावाकी के नाम पर रखा गया है, इस पद्धति में प्रत्येक वर्ग मीटर में दो से चार विभिन्न प्रकार के देशी पेड़ लगाए जाते हैं।
- इस पद्धति का विकास 1970 के दशक में किया गया था, जिसका मूल उद्देश्य भूमि के एक छोटे से टुकड़े में हरित आवरण को सघन बनाना था।
- इस पद्धति में पेड़ आत्मनिर्भर हो जाते हैं और तीन वर्ष के भीतर अपनी पूरी लंबाई तक बढ़ जाते हैं।
- मियावाकी पद्धति में प्रयुक्त पौधे अधिकांशतः आत्मनिर्भर होते हैं तथा उन्हें खाद और पानी जैसी नियमित देखभाल की आवश्यकता नहीं होती।
- महत्त्व:
- देसी पेड़ों का घना हरा आवरण उस क्षेत्र के धूल कणों को सोखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है जहाँ उद्यान स्थापित किया गया है। पौधे सतह के तापमान को नियंत्रित करने में भी सहायता करते हैं।
- इन वनों में प्रयुक्त होने वाले कुछ सामान्य देसी पौधों में अंजन, अमला, बेल, अर्जुन और गूँज शामिल हैं।
- ये वन नई जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को प्रोत्साहित करते हैं जिससे मृदा की उर्वरता बढ़ती है।
- देसी पेड़ों का घना हरा आवरण उस क्षेत्र के धूल कणों को सोखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है जहाँ उद्यान स्थापित किया गया है। पौधे सतह के तापमान को नियंत्रित करने में भी सहायता करते हैं।