उत्तराखंड
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अवमान नोटिस जारी किया
- 24 Jun 2024
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 10 वर्ष की सेवा वाले व्याख्याताओं और सहायक अध्यापकों को उच्च वेतनमान प्रदान करने के अपने आदेशों का पालन न करने पर विद्यालयी शिक्षा निदेशक को अवमान नोटिस जारी किया है।
मुख्य बिंदु:
- पिछले आदेश के अनुसार, उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि व्याख्याताओं और सहायक अध्यापकों को चयन तथा पदोन्नति वेतनमान के साथ अतिरिक्त वेतन वृद्धि मिलनी चाहिये।
- सरकार अभी भी इस मुद्दे पर विचार-विमर्श कर रही है और अंतिम निर्णय पर नहीं पहुँची है।
- वर्ष 2011 में नियुक्त व्याख्याताओं ने तर्क दिया कि उन्हें दस वर्ष की सेवा पूरी करने के बाद उत्तराखंड सरकारी सेवक वेतन नियम, 2016 के अनुसार अतिरिक्त वेतन वृद्धि तथा चयन वेतनमान मिलना चाहिये।
- सरकार ने एक दशक बाद चयन वेतनमान तो दिया, लेकिन उम्मीद के मुताबिक अतिरिक्त वेतन वृद्धि नहीं दी।
न्यायालय अवमान
- परिचय:
- न्यायालय अवमान न्यायिक संस्थाओं को प्रेरित हमलों और अनुचित आलोचना से बचाने तथा इसके अधिकार को कम करने वालों को दंडित करने के लिये एक वैधानिक तंत्र के रूप में कार्य करती है।
- वैधानिक आधार:
- जब संविधान को अपनाया गया था, तब भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत न्यायालय अवमान को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंधों में से एक बनाया गया था।
- इसके अलावा, संविधान के अनुच्छेद 129 ने सर्वोच्च न्यायालय को स्वयं के अवमान को दंडित करने की शक्ति प्रदान की। अनुच्छेद 215 ने उच्च न्यायालयों को इसी प्रकार की शक्ति प्रदान की।
- न्यायालय अवमान अधिनियम, 1971 इस विचार को वैधानिक समर्थन देता है।
- न्यायालय अवमान के प्रकार:
- सिविल अवमान: यह न्यायालय के किसी निर्णय, डिक्री, निर्देश, आदेश, रिट या अन्य प्रक्रिया की जानबूझकर अवज्ञा या न्यायालय को दिये गए वचन का जानबूझकर उल्लंघन है।
- आपराधिक अवमान: यह किसी भी मामले का प्रकाशन या वः अन्य कार्य है जो किसी भी न्यायालय के अधिकार को कम करता है या इसको बदनाम करता है अथवा किसी न्यायिक कार्यवाही के नियत क्रम में हस्तक्षेप करता है अथवा किसी अन्य तरीके से न्याय प्रशासन को बाधित करता है।
- सजा:
- न्यायालय अवमान अधिनियम, 1971 के तहत दोषी को छह महीने तक की कैद या 2,000 रुपए का ज़ुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
- इसमें वर्ष 2006 में संशोधन करके बचाव के तौर पर “सत्य और सद्भावना” को शामिल किया गया।
- इसमें यह भी जोड़ा गया कि न्यायालय केवल तभी दंड दे सकता है जब दूसरे व्यक्ति का कार्य न्याय के उचित तरीके में बहुत हद तक हस्तक्षेप करता हो या हस्तक्षेप करने की प्रवृत्ति रखता हो।
- न्यायालय अवमान अधिनियम, 1971 के तहत दोषी को छह महीने तक की कैद या 2,000 रुपए का ज़ुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।