आम की प्रूनिंग का परमिट रद्द | 11 Jul 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के किसानों को आम के वृक्षों की छँटाई/प्रूनिंग के लिये किसी भी सरकारी विभाग से अनुमति लेने की आवश्यकता से छूट देने का निर्णय लिया।
- आम उत्पादक अपनी उत्पादकता बढ़ाने के लिये पेड़ों की छँटाई कर सकते हैं और उनकी ऊँचाई कम कर सकते हैं।
मुख्य बिंदु:
- इस निर्णय से पुराने आम के बागों के लिये कैनोपी प्रबंधन आसान हो गया है। इससे पुराने आम के बागों का कायाकल्प हो जाएगा और वे नए बागों की तरह उत्पादक बन जाएंगे।
- पुराने बागों में नई पत्तियों और शाखाओं की वृद्धि में कमी आ गई है, जो फूल तथा फल के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- इसके बजाय, मोटी और उलझी हुई शाखाएँ अधिक हैं, जो पर्याप्त प्रकाश को अंदर तक पहुँचने से रोकती हैं।
- इन परिस्थितियों के परिणामस्वरूप कीटों और बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है तथा कीटनाशकों का प्रभावी प्रयोग जटिल हो जाता है।
- परिणामस्वरूप, छिड़काव किये गए कीटनाशक अक्सर पेड़ों के अंदरूनी हिस्सों तक पहुँचने में विफल हो जाते हैं, जिससे कीटनाशकों का उपयोग बढ़ जाता है और पर्यावरण प्रदूषण बढ़ जाता है।
- इन समस्याओं से निपटने के लिये केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (Central Institute of Subtropical Horticulture- CISH) ने आम के वृक्षों को पुनर्जीवित करने हेतु एक प्रभावी छँटाई तकनीक विकसित की है।
- इस विधि को तृतीयक शाखाओं की छँटाई या टेबल-टॉप प्रूनिंग कहा जाता है, जिससे वृक्ष की कैनोपी खुल जाती है, उसकी ऊँचाई कम हो जाती है तथा स्वस्थ वातावरण को बढ़ावा मिलता है।
- इस छँटाई तकनीक (Pruning Technique) से वृक्षों से 2-3 वर्षों में ही 100 किलोग्राम तक उपज प्राप्त की जा सकती है, साथ ही अत्यधिक कीटनाशकों के उपयोग की आवश्यकता भी कम हो जाती है।
केंद्रीय उपोष्णकटिबंधीय बागवानी संस्थान (CISH)
- इसे 4 सितंबर, 1972 को भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलूरु के तत्त्वावधान में केंद्रीय आम अनुसंधान केंद्र के रूप में शुरू किया गया था।
- संस्थान, जिसका नाम बाद में 14 जून, 1995 को केंद्रीय उपोष्णकटिबंधीय बागवानी संस्थान (Central Institute for Subtropical Horticulture- CISH) रखा गया, उपोष्णकटिबंधीय फलों पर अनुसंधान के सभी पहलुओं पर राष्ट्र की सेवा कर रहा है।
- CISH का मुख्यालय लखनऊ, उत्तर प्रदेश में स्थित है।