मध्य प्रदेश
हलमा की परंपरा
- 27 Feb 2023
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चर्चा में क्यों?
26 फरवरी, 2023 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने झाबुआ ज़िले के हाथीपाव पहाड़ी पर हलमा उत्सव और विकास यात्रा के समापन समारोह में कहा कि हलमा की परंपरा को समूचे मध्य प्रदेश में विस्तारित किया जायेगा।
प्रमुख बिंदु
- मुख्यमंत्री ने कहा कि हलमा ऐसी परंपरा है, जिससे प्रकृति को ग्लोबल वार्मिंग से बचाया जा सकता है। वनवासी समाज की हलमा परंपरा अद्वितीय है। यह संकट में खड़े मनुष्य की सहायता का संदेश देती है। उन्होंने कहा कि इस परंपरा को समूचे मध्य प्रदेश में विस्तारित करते हुए जल, मिट्टी और पर्यावरण-संरक्षण का कार्य किया जाएगा।
- भारत के जनजाति समाज में आज भी जीवन यापन की कई देशज विधाएँ मौजूद हैं जो वर्तमान समय में विकास के कारण उत्पन्न विभिन्न समस्याओं का समाधान कर सकती हैं। उन्हीं में से एक विधा है भील जनजाति की हलमा परंपरा। इस परंपरा के महत्त्व के कारण ही 24 अप्रैल, 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में इसका जिक्र किया।
- हलमा ने झाबुआ ज़िले के बड़े हिस्से में जल संकट को कम करने में बड़ी भूमिका निभाई है। भील समुदाय की यह परंपरा देशज विधाओं की तकनीकी समृद्धता का अनोखा उदाहरण है।
- आदिवासी जनजातियों में हलमा हाँडा और हीडा जैसे नामों से परस्पर सामुदायिक सहयोग की भावना की इस तरह की प्रथा या परंपरा मौजूद हैं और लोक साहित्य में इनका उल्लेख भी है। परंतु कालांतर में ये लुप्त होती गईं।
- गौरतलब है कि हलमा भील समाज में एक मदद की परंपरा है। जब कोई व्यक्ति या परिवार अपने संपूर्ण प्रयासों के बाद भी अपने पर आए संकट से उबर नहीं पाता है तब उसकी मदद के लिये सभी ग्रामीण भाई-बंधु जुटते हैं और अपने नि:स्वार्थ प्रयत्नों से उसे मुश्किल से बाहर ले आते हैं।
- यह एक ऐसी गहरी और उदार परंपरा है जिसमें संकट में फँसे व्यक्ति की सहायता तो की जाती है पर दोनों ही पक्षों द्वारा किसी भी तरह का अहसान न तो जताया जाता है न ही माना जाता है। परस्पर सहयोग और सहारे की यह परंपरा दर्शाती है कि समाज में एक दूजे की मजबूती कैसे बना जाता है। किसी को भी मझधार में अकेले नहीं छोड़ा जाता है बल्कि उसे निश्छल मदद के द्वारा समाज की मुख्य धारा से जोड़ा जाता है।
- भील शब्द का महत्त्व इसीलिये भी अधिक हो जाता है क्योंकि इस जनजाति को भारत की सबसे प्राचीन और अपनी परंपराओं को जीवित रखने वाली जनजाति माना जाता है। भील भारत की तीसरी सबसे बड़ी जनजातीय समाज है। आज़ादी से पहले हुए अंतिम जनगणना 1941 के अनुसार देश में भीलों की आबादी लगभग 2 मिलियन थी जो अब 17 मिलियन हो चुकी है।
- भील समुदाय मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान, महाराष्ट्र सहित देश के अन्य राज्यों में भी हैं। मध्य प्रदेश का भील समुदाय अन्य भील समुदाय के जैसे ही अपनी परंपरा को जीवित रखे हुए है। आज भी मध्य प्रदेश के भीलों की सांस्कृतिक परंपरा उनके धार्मिक कृत्यों, उनके गानों तथा नृत्यों, उनके सामुदायिक देवी-देवताओं, त्वचा के गोदनों, पौराणिक गाथाओं तथा विधा में अभिव्यक्त होती है। उनके घरों से सौंदर्यशास्त्र का सहज बोध प्रकट होता है।
- उल्लेखनीय है कि सन 2005 में हलमा परंपरा को एक गैर-सरकारी संगठन ‘शिवगंगा’ने शुरू किया। महेश शर्मा और हर्ष चौहान की इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। महेश शर्मा को भारत सरकार द्वारा उनके कार्यों के लिये 2019 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। आज वो भील जनजातियों के बीच झाबुआ के गांधी बन चुके हैं।
- हलमा को बड़े पैमाने पर 2008 में व्यवहारिक रूप दिया गया। परिणामस्वरूप साल 2009 के पहले हलमा में पानी के छोटे-छोटे गड्ढे बनाने के लिये आठ सौ लोग सामने आए और श्रम दान किया, अगले वर्ष यानि 2010 में सहभागिता बढ़कर 1600 हो गई। 2011 में दस हज़ार लोग इसमें शामिल हुए और आज यह संख्या एक आंदोलन का रूप ले चुकी है, जिसे देखने और समझने के लिये सरकार से लेकर शोधार्थियों की बड़ी संख्या इस पर शोध कर रही है। साथ ही बाहरी दुनिया से बढ़ते संपर्क ने इस क्षेत्र को आधुनिक तकनीकों से अपनी समस्या के समाधान का तरीका भी सिखाया है।