भोपाल गैस त्रासदी के विषैले अपशिष्ट का निपटान | 02 Aug 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के लगभग 40 वर्ष बाद, यूनियन कार्बाइड संयंत्र से निकले 337 मीट्रिक टन (MT) विषैले अपशिष्ट को जलाने का निर्णय लिया।
मुख्य बिंदु
- केंद्र सरकार ने अपशिष्ट के निपटान के लिये 126 करोड़ रुपए निर्धारित किये हैं।
- इंदौर के पीथमपुर स्थित उपचार भंडारण निपटान सुविधा (TSDF) के भस्मक में निपटान प्रक्रिया 180 दिनों में पूरी होने की उम्मीद है।
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निपटान प्रक्रिया में दूषित स्थल से अपशिष्ट को निपटान स्थल तक ले जाना, उसे अभिकर्मकों के साथ मिश्रित करना और फिर जला देना शामिल है।
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मध्य प्रदेश भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग (BGTRR) निपटान की देख-रेख करेगा।
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चुनौतियाँ एवं चिंताएँ:
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पीथमपुर TSDF में अपशिष्ट को जलाने की योजना को निवासियों के विरोध का सामना करना पड़ा, जिसके कारण वर्ष 2015 में आगे की योजना को स्थगित कर दिया गया।
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की 2021 की रिपोर्ट में फैक्ट्री के उत्तर में स्थित सौर वाष्पीकरण तालाबों (SEP) के सुधार का निर्देश दिया गया था, जो चल रहे पर्यावरणीय प्रदूषण का संकेत देता है।
- सौर वाष्पीकरण तालाबों (SEP) का उपयोग मुख्य रूप से नाइट्रेट की उच्च सांद्रता से संदूषित निम्न-स्तरीय रेडियोधर्मी अपशिष्टों को संग्रहीत करने के लिये किया जाता था।
- साइट के आस-पास के बोरवेल के पानी में भारी धातुओं और अन्य संदूषकों के अंश पाए गए हैं, जो स्वीकार्य सीमा से अधिक हैं।
- गैस त्रासदी के पीड़ितों के पुनर्वास के लिये कार्य कर रहे सामाजिक समूहों ने दहन प्रक्रिया की सुरक्षा के बारे में दावों का खंडन किया है तथा परीक्षण के दौरान डाइऑक्सिन और फ्यूरान के उच्च स्तर का पता चलने का हवाला दिया है।
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भोपाल गैस त्रासदी 1984
- भोपाल गैस त्रासदी इतिहास की सबसे खराब औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक थी, जो 2-3 दिसंबर, 1984 की रात को भोपाल, मध्य प्रदेश में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) कीटनाशक संयंत्र में हुई थी।
- इसने लोगों और जानवरों को अत्यधिक विषैली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) के संपर्क में ला दिया, जिससे तत्काल तथा दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभाव एवं मौतें हुईं।