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झारखंड

‘झारखंड स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा और परिणामी सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभों को ऐसे स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिये विधेयक, 2022’ को राज्यपाल ने वापस लौटाया

  • 30 Jan 2023
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

29 जनवरी, 2023 को झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार की ओर से पारित 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति से संबंधित ‘झारखंड स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा और परिणामी सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभों को ऐसे स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिये विधेयक, 2022’ को राज्यपाल रमेश बैस ने समीक्षा के लिये वापस लौटा दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • राज्यपाल ने विधेयक को लौटाते हुए राज्य सरकार से कहा है कि इस विधेयक की वैधानिकता की गंभीरतापूर्वक समीक्षा करें कि यह संविधान के अनुरूप एवं सुप्रीम कोर्ट के आदेशों व निर्देशों के अनुरूप हो।
  • उल्लेखनीय है कि हेमंत सोरेन की अगुवाई में चल रही झारखंड मुक्ति मोर्चा, कॉन्ग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (झामुमो-कॉन्ग्रेस-राजद) की महागठबंधन सरकार ने ‘झारखंड स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा और परिणामी सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभों को ऐसे स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिये विधेयक, 2022’ को 11 नवंबर, 2022 को ध्वनिमत से पारित करके अनुमोदन के लिये राज्यपाल के पास भेजा था।
  • इस विधेयक में कहा गया था कि झारखंड में स्थानीय व्यक्ति वे लोग कहलाएंगे, जो भारत के नागरिक होंगे और झारखंड की क्षेत्रीय एवं भौगोलिक सीमा में निवास करते हैं। उसके पूर्वज के नाम 1932 या उससे पहले के सर्वेक्षण/खतियान में दर्ज़ हैं।
  • इस विधेयक में यह भी कहा गया है कि इस अधिनियम के तहत पहचाने गए स्थानीय व्यक्ति ही राज्य में तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी की सरकारी नौकरी के हकदार होंगे।
  • विधेयक की समीक्षा में पाया गया कि संविधान की धारा 16 में सभी नागरिकों को नियोजन के मामले में समान अधिकार प्राप्त हैं। संविधान की धारा 16(3) के अनुसार सिर्फ संसद को विशेष प्रावधान के तहत धारा 35(A) के अंतर्गत नियोजन के मामले में किसी भी प्रकार की शर्त लगाने का अधिकार है। राज्य विधानमंडल को यह शक्ति प्राप्त नहीं है।
  • गौरतलब है कि ए.वी.एस. नरसिम्हा राव एवं अन्य बनाम आंध्र प्रदेश एवं अन्य (AIR 1970 SC 422) में भी स्पष्ट व्याख्या की गई है कि नियोजन के मामले में किसी भी प्रकार की शर्त लगाने का अधिकार केवल भारतीय संसद में ही निहित है। इस प्रकार यह विधेयक संविधान के प्रावधान तथा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विपरीत है।
  • झारखंड राज्य के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्र है, जो पाँचवीं अनुसूची में आता है। उक्त क्षेत्रों में शत-प्रतिशत स्थानीय व्यक्तियों को नियोजन में आरक्षण देने के विषय पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच द्वारा स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किया जा चुका है। इस आदेश में भी सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित क्षेत्रों में नियुक्तियों की शर्त लगाने की राज्यपाल में निहित शक्तियों को भी संविधान की धारा 16 के विपरीत घोषित किया था।
  • सत्यजीत कुमार बनाम झारखंड राज्य के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित क्षेत्रों में राज्य द्वारा दिये गए शत-प्रतिशत आरक्षण को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। विदित है कि विधि विभाग ने स्पष्ट किया था कि प्रश्नगत विधेयक के प्रावधान संविधान एवं सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के विपरीत हैं। साथ ही कहा गया है कि ऐसे प्रावधान सुप्रीम कोर्ट एवं झारखंड हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेशों के अनुरूप नहीं हैं।
  • विधि विभाग ने यह भी कहा कि ऐसा प्रावधान स्पष्टत: भारतीय संविधान के भाग-III के अनुच्छेद 14, 15, 16 (2) में प्रदत्त मूल अधिकार से असंगत व प्रतिकूल प्रभाव रखने वाला प्रतीत होता है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 से भी प्रभावित होगा तथा अनावश्यक वाद-विवादों को जन्म देगा।
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