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उत्तराखंड

गंगाजल को अमृत बनाने वाले मित्र जीवाणु हो रहे विलुप्त

  • 13 Aug 2022
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों के शोध से खुलासा हुआ है कि गंगा की सहायक नदियों अलकनंदा और भागीरथी के जल को सेहतमंद बनाने वाले मित्र जीवाणु (माइक्रो इनवर्टिब्रेट्स) प्रदूषण के कारण तेज़ी से विलुप्त हो रहे हैं।

प्रमुख बिंदु

  • वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वीपी उनियाल की देखरेख में डॉ. निखिल सिंह व अन्य ने दोनों नदियों में अलग-अलग स्थानों पर मित्र जीवाणु (माइक्रो इनवर्टिब्रेट्स) की जाँच की। ‘नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी)’ के तहत वैज्ञानिकों ने अलकनंदा नदी में माणा (बदरीनाथ) से लेकर देवप्रयाग तक और भागीरथी नदी में गोमुख से लेकर देवप्रयाग तक अध्ययन किया।
  • वैज्ञानिकों के शोध से पता चला है कि भागीरथी नदी में गोमुख से लेकर देवप्रयाग तक कई स्थान पर या तो मित्र जीवाणु पूरी तरह गायब हैं या उनकी संख्या बेहद कम है। यही स्थिति अलकनंदा नदी में माणा से लेकर देवप्रयाग तक पाई गई है। दोनों नदियों में माइक्रो इनवर्टिब्रेट्स का कम पाया जाना इस बात का संकेत है कि यहाँ पानी की गुणवत्ता ठीक नहीं है।
  • दोनों नदियों में मित्र जीवाणुओं का अध्ययन ईफेमेरोपटेरा, प्लेकोपटेरा, ट्राइकोपटेरा (ईपीटी) के मानकों पर किया गया। यदि किसी नदी के जल में ईपीटी इंडेक्स बीस फीसदी पाया जाता है तो इससे साबित होता है कि जल की गुणवत्ता ठीक है। यदि ईपीटी इंडेक्स तीस फीसदी से अधिक है तो इसका मतलब जल की गुणवत्ता बहुत ही अच्छी है। लेकिन, दोनों नदियों में कई जगहों पर ईपीटी का इंडेक्स 15 फीसदी से भी कम पाया गया है, जो चिंताजनक पहलू है।
  • पूर्व में जलविज्ञानियों द्वारा किये गए शोध में यह बात सामने आई है कि गंगाजल में बैट्रियाफोस नामक बैक्टीरिया पाया जाता है, जो गंगाजल के अंदर रासायनिक क्रियाओं से उत्पन्न होने वाले अवांछनीय पदार्थ को खाता रहता है। इससे गंगाजल की शुद्धता बनी रहती है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार गंगाजल में गंधक की बहुत अधिक मात्रा पाए जाने से भी इसकी शुद्धता बनी रहती है और गंगाजल लंबे समय तक खराब नहीं होता है।
  • वैज्ञानिक शोधों से यह बात भी सामने आई है कि देश की अन्य नदियाँ पंद्रह से लेकर बीस किमी. के बहाव के बाद खुद को साफ कर पाती हैं और नदियों में पाई जाने वाली गंदगी नदियों की तलहटी में जमा हो जाती है, लेकिन गंगा महज़ एक किमी. के बहाव में खुद को साफ कर लेती है।
  • ऑल वेदर रोड के साथ ही नदियों के किनारे बड़े पैमाने पर किये जा रहे विकास कार्यों का मलबा सीधे नदियों में डाला जा रहा है। नदियों के किनारे बसे शहरों के घरों से निकलने वाला गंदा पानी बिना ट्रीटमेंट के नदियों में प्रवाहित किया जा रहा है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार गंगाजल में अन्य नदियों के जल की तुलना में वातावरण से ऑक्सीजन सोखने की क्षमता बहुत अधिक होती है। दूसरी नदियों की तुलना में गंगा में गंदगी को हजम करने की क्षमता 20 गुना अधिक पाई जाती है।
  • उल्लेखनीय है कि गंगा नदी में डॉल्फिन समेत मछलियों की 140, सरीसृपों की 35 और स्तनधारी जीवों की 42 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। भागीरथी, अलकनंदा, महाकाली, करनाली, कोसी, गंडक, सरयू, यमुना, सोन और महानंदा गंगा की मुख्य सहायक नदियाँ हैं।
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