मध्य प्रदेश
रीवा के सुंदरजा आम और मुरैना की गजक को मिला जीआई टैग
- 27 Mar 2023
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चर्चा में क्यों?
26 मार्च, 2023 को केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने सोशल मीडिया पर जानकारी साझा करते हुए बताया कि मध्य प्रदेश के रीवा ज़िले के सुंदरजा आम और मुरैना की गज़क को GI टैग प्रदान किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- गौरतलब है कि सुंदरजा आम मध्य प्रदेश के रीवा ज़िले के गोविंदगढ़ कस्बे में बहुतायत में होता है। फलों के राजा आम की यह एक विशेष प्रजाति है। सुंदरजा सिर्फ भारत के लोगों की ही पसंद नहीं है बल्कि विदेशों में भी इसकी चर्चा हैं। सुंदरजा आम की खासियत यह है कि यह बिना रेशे वाला होता है और इसमें पाई जाने वाली शर्करा का प्रकार कुछ ऐसा है कि इसे शुगर के मरीज भी खा सकते हैं।
- विंध्य क्षेत्र की शान समझे जाने वाले सुंदरजा आम का उत्पादन पहले रीवा ज़िले के गोविंदगढ़ किले के बगीचों में होता था लेकिन कालांतर में गोविंदगढ़ इलाके के साथ ही रीवा शहर से लगे कुठुलिया फल अनुसंधान केंद्र में भी बहुतायत मात्रा में इसकी खेती की जाती है।
- हालाँकि गोविंदगढ़ के बागों में होने वाला सुंदरजा आम हल्का सफेद रंग लिये होता है जबकि रीवा के कुठुलिया फल अनुसंधान केंद्र में उत्पादित होने वाला सुंदरजा आम हल्का हरा होता है।
- सुंदरजा आम की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वर्ष 1968 में इस आम के नाम पर डाक टिकट जारी किया गया था।
- वहीं, मुरैना का गज़क एक प्रकार की मिठाई है। अगर गज़क के साथ मुरैना का नाम जुड़ जाए तो लोग इसे क्वालिटी और स्वाद के लिये सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। इसीलिये मुरैना की गज़क का स्वाद पूरे देश में प्रसिद्ध है।
- गज़क बनाने का काम मुरैना का मुख्य उद्योग है। मुरैना जैसे छोटे ज़िले में लगभग गज़क की एक हज़ार से अधिक दुकानें हैं। अगर गुड़ और तिल से बनी मिठाइयों की बात आए तो गज़क को श्रेष्ठ माना जाता है। इस गज़क का इस्तेमाल लोग पूरे साल करते हैं, लेकिन सर्दियों में इसे खाना गुणकारी माना जाता है।
- विदित है कि हाल ही में दिल्ली में प्रगति मैदान में लगी फूड फेस्टिवल में मुरैना के गज़क को इटली, दुबई, ब्रिटेन से आए डेलीगेट्स ने काफी पसंद किया था।
- गौरतलब है कि किसी भी रीजन का जो क्षेत्रीय उत्पाद होता है, उससे उस क्षेत्र की पहचान होती है। उस उत्पाद की ख्याति जब देश-दुनिया में फैलती है तो उसे प्रमाणित करने के लिये एक प्रक्रिया होती है, जिसे ‘जीआई टैग’ यानी जियोग्राफिकल इंडीकेटर (भौगोलिक संकेतक) कहते हैं। किसी क्षेत्र के किसी खास उत्पाद के प्रमाणीकरण की प्रक्रिया वर्ष 2003 में शुरू की गई थी। इसलिये जीआई टैग को 2003 में शुरू किया गया। भारत में सबसे पहला जीआई टैग 2004 में पश्चिम बंगाल की Darjeeling Tea (दार्जिलिंग चाय) को दिया गया था।
- किसी भी क्षेत्र की विशेष वस्तु जो उस क्षेत्र के अलावा कहीं और नहीं पाई जाए, उसे विशेष पहचान दिलाने के लिये जीआई टैग दिया जाता है। जीआई टैग उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग द्वारा जारी किया जाता है, जो वाणिज्य मंत्रालय के तहत संचालित होता है।
- उल्लेखनीय है कि सुंदरजा आम और मुरैना की गज़क के साथ ही छत्तीसगढ़ के धमतरी ज़िले के नागरी दूबराज चावल को भी जीआई टैग मिला है।