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छत्तीसगढ़

एसईसीएल हरित आवरण को बढ़ाने के लिये ‘मियावाकी’ वृक्षारोपण विधि का उपयोग करेगा

  • 09 Dec 2023
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

6 दिसंबर, 2023 को पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ के कोयला बेल्ट क्षेत्र में वन आवरण को बढ़ावा देने के लिये साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) अपने परिचालन क्षेत्रों में पहली बार जापान की लोकप्रिय ‘मियावाकी’ पद्धति का उपयोग करके वृक्षारोपण करेगी।

प्रमुख बिंदु

  • कोल इंडिया लिमिटेड की सहायक कंपनी एसईसीएल पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर गेवरा क्षेत्र में दो हेक्टेयर क्षेत्र में मियावाकी जंगल विकसित करने के लिये लोकप्रिय जापानी तकनीक का उपयोग करेगी।
  • यह परियोजना लगभग 4 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत पर छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम (CGRVVN) के साथ साझेदारी में लागू की जाएगी।
  • मियावाकी तकनीक का उपयोग करके वृक्षारोपण दो वर्षों की अवधि में किया जाएगा, जिसमें लगभग 20,000 पौधे लगाए जाएंगे। वृक्षारोपण में बड़े पौधे, जैसे- बरगद, पीपल, आम, जामुन आदि; मध्यम पौधे, जैसे- करंज, आँवला, अशोक आदि और छोटे पौधे, जैसे- कनेर, गुड़हल, त्रिकोमा, बेर, अंजीर, नींबू आदि शामिल होंगे।
  • विदित हो कि वृक्षारोपण की मियावाकी पद्धति की शुरुआत 70 के दशक में जापानी वनस्पतिशास्त्री और पादप पारिस्थितिकी विशेषज्ञ अकीरा मियावाकी ने की थी। वृक्षारोपण की इस तकनीक में प्रत्येक वर्ग मीटर के भीतर देशी पेड़, झाड़ियाँ और ग्राउंडकवर पौधे लगाना शामिल है। यह कम जगह में तेजी से घने जंगल को विकसित करने के लिये एक आदर्श विधि है।
  • मियावाकी वृक्षारोपण के लिये चुनी गई प्रजातियाँ आमतौर पर ऐसे पौधों की होती हैं, जिन्हें बहुत अधिक रखरखाव की आवश्यकता नहीं होती है और वे कठोर मौसम एवं पानी की कमी की स्थिति में जीवित रह सकते हैं तथा मौज़ूदा परिस्थितियों में तेजी से बढ़ सकते हैं। इससे कम समय में एक घना जंगल विकसित करने में मदद मिलती है।
  • एसईसीएल में मियावाकी वृक्षारोपण की पायलट परियोजना से कम समय में देश की सबसे बड़ी कोयला खदान गेवरा खदान के आसपास हरित आवरण बढ़ाने में मदद मिलेगी। फलदार, एवेन्यू और सजावटी पेड़ों की स्वदेशी प्रजातियों से बना जंगल स्थानीय समुदायों और वन्यजीवों के लिये भी लाभकारी सिद्ध होगा। परियोजना के तहत विकसित जंगल धूल के कणों को सोखने में एवं सतह के तापमान को नियंत्रित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
  • उल्लेखनीय है कि भारत की अग्रणी कोयला कंपनियों में से एक होने के अलावा एसईसीएल अपनी खदानों के आसपास हरित आवरण को बढ़ावा देने एवं पर्यावरण को संरक्षित करने और कोयला खनन के प्रभावों को कम करने की दिशा में लगातार काम कर रही है।
  • अपनी स्थापना के बाद से अब तक एसईसीएल 3 करोड़ से अधिक पौधे लगा चुका है। वित्त वर्ष 2023-24 में कंपनी ने 475 हेक्टेयर क्षेत्र में हरित आवरण का विकास किया है तथा 10.77 लाख पौधे लगाए हैं, जो कोल इंडिया की सभी सहायक कंपनियों में सबसे अधिक है।
  • कंपनी ने हाल ही में 2023-24 से 2027-28 तक पाँच साल की अवधि के लिये 169 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत पर वृक्षारोपण और इसके बाद 4 वर्षों के रखरखाव के लिये छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम (सीजीआरवीवीएन) और मध्य प्रदेश राज्य वन विकास निगम (एमपीआरवीवीएन) के साथ समझौता किया है।

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