मध्य प्रदेश
देश की 13 नदियों के कायाकल्प की परियोजना में नर्मदा का चयन
- 16 Mar 2022
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से वानिकी संबंधी पहलों के माध्यम से 13 प्रमुख नदियों के कायाकल्प पर जारी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) में मध्य प्रदेश की जीवनदायिनी नदी नर्मदा को शामिल किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- विस्तृत परियोजना रिपोर्ट में 13 प्रमुख नदियाँ- झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास, सतलुज, यमुना, ब्रह्मपुत्र, लूनी, नर्मदा, गोदावरी, महानदी, कृष्णा और कावेरी शामिल हैं। परियोजना के अंतर्गत 202 सहायक नदियों सहित 13 नदियों की लंबाई 42,830 किमी. है।
- ये 13 नदियाँ सामूहिक रूप से 18,90,110 वर्ग किमी. के कुल बेसिन क्षेत्र को आच्छादित करती हैं, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 57.45 प्रतिशत है।
- विस्तृत परियोजना रिपोर्ट वर्ष 2015-16 में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) के हिस्से के रूप में किये गए कार्यों की तर्ज़ पर यह स्वीकार करते हुए तैयार किया गया है कि बढ़ता जल संकट नदी के पारिस्थितिक तंत्र के क्षरण का कारण है।
- नर्मदा नदी (जिसे रेवा के नाम से भी जाना जाता है) उत्तर और दक्षिण भारत के बीच एक पारंपरिक सीमा की तरह कार्य करती है। यह अपने उद्गम मैकल पर्वत के अमरकंटक शिखर से पश्चिम की ओर 1,312 किमी. बहते हुए खंभात की खाड़ी में जा मिलती है।
- यह परियोजना रिपोर्ट एक बहु-स्तरीय, बहु-हितधारक, बहु-विषयक और समग्र दृष्टिकोण पर आधारित है, ताकि ‘अविरल धारा’, ‘निर्मल धारा’और पारिस्थितिक कायाकल्प के व्यापक उद्देश्यों को पूरा किया जा सके।
- डीपीआर तीन प्रकार के परिदृश्यों में वानिकी हस्तक्षेप और आर्द्रभूमि प्रबंधन के लिये एक समग्र रिवरस्केप दृष्टिकोण अपनाने की क्षमता की पहचान करता है।
- वानिकी के ज़रिये 13 नदियों के संरक्षण के तहत नदियों के दोनों किनारों पर सघन पौधारोपण किया जाएगा। इससे वन क्षेत्र में 7,417.36 वर्ग किमी क्षेत्रफल की वृद्धि होने की उम्मीद है।
- प्रस्तावित हस्तक्षेप से 10 साल पुराने वृक्षारोपण से 50.21 मिलियन टन कार्बन डाईआक्साइड तथा 20 साल पुराने वृक्षारोपण से 74.76 मिलियन टन कार्बन डाईआक्साइड कम करने में मदद मिलेगी।
- 13 नदियों के परिदृश्य में प्रस्तावित हस्तक्षेप से प्रति वर्ष 1889.89 मिलियन घन मीटर ग्राउंड वाटर रिचार्ज होगा तथा तलछट के जमा होने में प्रतिवर्ष 64,83,114 घन मीटर की कमी आएगी।