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उत्तराखंड

‘रेट्रोफिट सॉल्यूशन तकनीक’

  • 23 Mar 2023
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

22 मार्च, 2023 को उत्तराखंड के परिवहन विभाग की ओर से वाहनों से निकलने वाले वायु प्रदूषण को रोकने के लिये आयोजित कार्यशाला में देहरादून स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज के मेकेनिकल क्लस्टर द्वारा तैयार की गई ‘रेट्रोफिट सॉल्यूशन तकनीक’को पेश किया गया, जो 15 साल से अधिक पुराने डीजल वाहनों को नई जिंदगी देगी।

प्रमुख बिंदु 

  • यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज के प्रो. डॉ. अजय कुमार ने बताया कि यूनिवर्सिटी की इंजन लेबोरेटरी के अनुसार ‘रेट्रोफिट सॉल्यूशन तकनीक’में डीजल वाहनों से उत्सर्जित प्रदूषण को घटाकर न्यूनतम स्तर पर लाया जाता है। इस तकनीक के इस्तेमाल से बीएस-6 की तरह वाहन कम प्रदूषण उत्सर्जित करेंगे।
  • इस तकनीक से उम्र पूरी कर चुके डीजल वाहनों को नई जिंदगी मिल सकती है और उन्हें फिर से सड़कों पर दौड़ने लायक बनाया जा सकता है।
  • पुराने वाहनों में डीजल जलने के बाद उससे निकलने वाली जहरीली गैस वायुमंडल में जाकर प्रदूषण फैलाती है। इसे साफ करने के लिये इस तकनीक में विशेष फिल्टरों का प्रयोग किया जाता है।
  • ‘रेट्रोफिट सॉल्यूशन तकनीक’में डीजल ऑक्सीडेशन कैटलिस्ट का प्रयोग किया जाता है, जो एक प्रकार का फिल्टर है। यह कार्बन मोनो ऑक्साइड को कार्बन डाई ऑक्साइड में बदल देता है। धुएँ में शामिल सूक्ष्म कण डीजल पार्टिकुलेट फिल्टर (डीपीएफ) में फंस जाते हैं। इन कणों को जलाने के लिये माइक्रोवेव्स ओवन का प्रयोग किया जाता है।
  • इससे निकलने वाली किरणें सूक्ष्म कणों को जला देती हैं। इसके बाद इन्हें बाहर निकाल दिया जाता है और फिल्टर साफ हो जाता है। इसमें सिलेक्टिव केटेलिटिक रिडक्शन (एससीआर) फिल्टर का भी प्रयोग किया जाता है। इसमें लिक्विड अमोनिया के प्रयोग से जहरीली नाइट्रोजन ऑक्साइड को पानी में बदल दिया जाता है। इससे वायु प्रदूषण करने वाले प्रमुख तत्त्वों को उत्सर्जित होने से रोक दिया जाता है।
  • यूनिवर्सिटी की इंजन लेबोरेटरी के अनुसार इस तकनीक से डीजल वाहनों के धुएँ में शामिल 60 प्रतिशत तक बिना जले कार्बन को जला दिया जाता है। वहीं, 29 प्रतिशत कार्बन मोनो ऑक्साइड को कार्बन डाई ऑक्साइड में बदल दिया जाता है। इस तकनीक से 91 प्रतिशत तक सूक्ष्म कण जलाकर खत्म कर दिये जाते हैं।
  • उल्लेखनीय है कि 2020 में इस तकनीक को बनाया गया। इसे पेटेंट कराने के लिये आवेदन किया गया है। कई चरणों में टेस्टिंग के बाद प्रक्रिया अंतिम चरण में है। इस तकनीक के ज़रिए वाहनों से निकलने वाले वायु प्रदूषण को बीएस-6 वाहनों की तरह न्यूनतम स्तर पर लाने में सफलता मिली है। 
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