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राजस्थान

अफ्रीकन स्वाइन फीवर संक्रमित एवं निगरानी क्षेत्र के प्रत्येक ज़िले में ब्लॉक स्तर पर त्वरित कार्यवाही दल गठित

  • 07 Feb 2023
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

6 फरवरी, 2023 को राजस्थान पशुपालन विभाग के निदेशक डॉ. भवानी सिंह राठौड़ ने बताया कि प्रदेश में अफ्रीकन स्वाइन फीवर के मामलों को गंभीरता से लेते हुए पशुपालन विभाग ने प्रदेश के प्रत्येक ज़िले में ब्लॉक स्तरीय दलों का गठन किया है।

प्रमुख बिंदु

  • डॉ. भवानी सिंह राठौड़ ने बताया कि संक्रमित क्षेत्र (इंफेक्टेड जोन), निगरानी क्षेत्र (सर्विलेंस ज़ोन) एवं मुक्त क्षेत्र (फ्री जोन) के आधार पर गठित इन दलों द्वारा संक्रमित एवं शूकर वंशीय पशुओं के विचरण स्थल पर पहुँचकर सर्वेक्षण कर रोग की रोकथाम एवं निदान के लिये हर-संभव कार्यवाही की जा रही है।
  • गठित दलों द्वारा संक्रमित एवं मृत शूकरों के सैंपल एकत्र कर अफ्रीकन स्वाइन फीवर रोग की पुष्टि के लिये राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान, निषाद भोपाल भिजवाए जा रहे हैं।
  • डॉ. भवानी सिंह राठौड़ ने बताया कि रोग के प्रति संवेदनशीलता को देखते हुए विभागीय अधिकारियों को अलर्ट जारी कर शूकर वंशीय पशुओं को इस रोग से बचाने एवं पशुपालकों को आर्थिक नुकसान से बचाने के लिये प्रत्येक ज़िले के प्रभावित क्षेत्रों में रोग सर्वेक्षण, रोग निदान, प्रतिबंधित/मुक्त क्षेत्र चिन्हित कर ‘क्षेत्र विशिष्ट कार्यवाही’निष्पादित की जाएगी।
  • शूकर वंशीय संक्रमित पशुओं एवं संपर्क में आए अन्य शूकरों का वैज्ञानिक रीति से यूथेनाइज, क्षेत्र का विसंक्रमण, वेक्टर कंट्रोल, जैव कचरे, पशु आहार एवं अन्य कचरे आदि का निस्तारण किया जाएगा, ताकि रोग पर नियंत्रण किया जा सके।
  • वहीं जंगली शूकरों में रोग प्रकोप नियंत्रण के लिये वन विभाग एवं अन्य संबंधित विभागों के साथ सामंजस्य स्थापित कर कार्यवाही की जा रही है।
  • उल्लेखनीय है कि अफ्रीकी स्वाइन फीवर घरेलू और जंगली सूअरों में होने वाली एक अत्यधिक संक्रामक रक्तस्रावी वायरल (Haemorrhagic Viral) बीमारी है। इस रोग के अन्य लक्षणों में उच्च बुखार, अवसाद, एनॉरेक्सिया, भूख में कमी, त्वचा में रक्तस्राव, डायरिया आदि शामिल हैं।
  • अफ्रीकन स्वाइन फीवर पहली बार वर्ष 1920 के दशक में अफ्रीका में पाया गया था। ऐतिहासिक रूप से, अफ्रीका और यूरोप के कुछ हिस्सों, दक्षिण अमेरिका और कैरीबियन में संक्रमण की सूचना मिली है।
  • हालाँकि वर्ष 2007 के बाद से अफ्रीका, एशिया और यूरोप के कई देशों में घरेलू और जंगली सूअरों में इस बीमारी की सूचना मिली है।
  • इसमें मृत्यु दर लगभग 95-100% है और इस बुखार का कोई इलाज नहीं है, इसलिये इसके प्रसार को रोकने का एकमात्र तरीका जानवरों को मारना है। अफ्रीकी स्वाइन फीवर मनुष्य के लिये खतरा नहीं होता है, क्योंकि यह केवल जानवरों से जानवरों में फैलता है।
  • अफ्रीकी स्वाइन फीवर, विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (OIE) के पशु स्वास्थ्य कोड में सूचीबद्ध एक बीमारी है।    
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