पुलिस यातना | 30 Sep 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गोरखपुर पुलिस द्वारा दी गई यातनाओं से कानपुर निवासी कारोबारी की मृत्यु हो गई। इस मृत्यु ने भारत में पुलिस द्वारा लोगों के विरुद्ध हिंसा के प्रयोग एवं हिरासत में मृत्यु जैसे विषयों को पुन: चर्चा का विषय बना दिया है।
प्रमुख बिंदु
- गैर-सरकारी संस्था ‘कॉमन काज’ की रिपोर्ट ‘स्टेटस ऑफ पुलिसिंग इन इंडिया’ के अनुसार, प्रत्येक 5 में से 3 पुलिस अधिकारियों का मानना है कि अपराधियों के विरुद्ध हिंसा का प्रयोग उचित है। वहीं एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार पुलिस के विरुद्ध 2000 से 2018 के बीच 2000 से अधिक मानवाधिकार उल्लंघन के मामले दर्ज किये गए हैं।
- पुलिस द्वारा हिंसा के लिये उत्तरदायी कारक-
- भारत में यातना के विरुद्ध कानूनों की अनुपस्थिति।
- पुलिसकर्मियों के विरुद्ध मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में कार्यवाही का न होना।
- पुलिस सुधारों की धीमी गति।
- दोषसिद्धि की निम्न दर।
- पुलिस यातना रोकने के लिये प्रावधान-
- डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कहा गया कि यातनाओं के विरुद्ध संरक्षण अनुच्छेद-21 में दिये गए जीवन के अधिकार के तहत एक मूल अधिकार है।
- दंड प्रक्रिया संहिता के तहत धारा 41A, 41B, 41C, 41D में गिरफ्तारी एवं निरोध (Detention) के लिये तार्किक आधार एवं नियम बताए गए हैं।
- भारतीय दंड संहिता की धाराएँ- 330, 331, 348
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम धारा- 25 और 26
- उल्लेखनीय है कि भारत द्वारा ‘यातना के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र अभिसमय’ पर हस्ताक्षर करने के बावजूद उसकी पुष्टि अब तक नहीं की गई है।