‘नमामि गंगे’ में अब भूगर्भ जल को भी साफ करने की योजना | 27 Dec 2022
चर्चा में क्यों?
26 दिसंबर, 2022 को बिहार शहरी अवसंरचना विकास निगम (बुडको) के एमडी धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि राज्य में नमामि गंगे परियोजना के तहत नदियों के साथ ही भूगर्भ जल को भी स्वच्छ रखने का काम शुरू होगा, जिसके लिये 78 छोटे शहरों का चयन भी कर लिया गया है।
प्रमुख बिंदु
- बुडको के एमडी धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि इस परियोजना के तहत बिहार के 78 छोटे शहरों के नाले का पानी भी साफ होकर नदियों या तालाबों में गिरेगा। इन शहरों में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने का काम जल्द शुरू होगा।
- विदित है कि राज्य में कई शहरों के नाले का पानी सीधे नदियों में गिराया जा रहा है। कई शहरों में तालाब या निचले भूखंडों में बहा दिया जाता है। दो माह पहले इन छोटे शहरों या निकायों का चयन किया गया है, जिसमें बीस हज़ार से ऊपर की आबादी वाले कुल 138 शहरी निकाय हैं।
- उन्होंने बताया कि वर्तमान में 26 शहरी निकायों में एसटीपी बनकर तैयार है। वहीं 18 शहरों या निकायों में एसटीपी के लिये डीपीआर को स्वीकृति मिल चुकी है। दो निकाय बक्सर और खगड़िया की डीपीआर को संशोधित किया जा रहा है। तीन अन्य निकायों- राजगीर, बोधगया और बिहारशरीफ में भी एसटीपी का काम चल रहा है। ग्यारह नए शहरों में एसटीपी की डीपीआर बनाने के लिये एजेंसियों से आवेदन मांगे गए हैं। इस तरह कुल 60 निकायों या शहरों के लिये एसटीपी बनाने काम या तो हो गया है या फिर प्रक्रिया में है।
- धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि नदी-तालाबों सहित विभिन्न जलस्रोतों को प्रदूषण मुक्त रखने पर राज्य सरकार लगातार काम कर रही है। जल-जीवन-हरियाली योजना के अंतर्गत भी इस पर काम हो रहा है। राज्य के छोटे शहरों के गंदे पानी को भी साफ करने के लिये ट्रीटमेंट प्लांट बनाने का निर्णय लिया गया है।
- उन्होंने बताया कि सरकार ने राज्य के सभी जलस्रोतों का सर्वे कराने का भी निर्णय लिया है ताकि उनका सटीक आँकड़ा मिले व उसके आधार पर योजना बने और इन जलस्रोतों को मछली उत्पादन के लिये विकसित किया जा सके। इससे राज्य का भूजलस्तर तो बेहतर होगा ही, जलस्रोतों का पानी भी साफ-सुथरा रहेगा।
- परियोजना के तहत ज्यादातर छोटे निकायों में एफएसटीपी (फिकल स्लग ट्रीटमेंट प्लांट) यानी अपशिष्ट शोधन संयंत्र लगाया जाएगा। अभी ज्यादातर छोटे शहरों में सेप्टिक टैंक भरने पर उसे नालियों में बहाने या टैंकर के माध्यम से दूसरे स्थानों पर नालों में फेंका जाता है। अब इसका सुरक्षित तरीके से निस्तारण हो सकेगा। इससे भूगर्भ जल प्रदूषण से निजात मिलेगी। साथ ही जैविक खाद और बेकार पानी से खेतों की सिंचाई भी हो सकेगी।