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उत्तराखंड

अपर्याप्त सिद्ध हुईं पाइन नीडल ऊर्जा परियोजनाएँ

  • 15 May 2024
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

विद्युत उत्पन्न करने के लिये बड़ी मात्रा में ज्वलनशील पाइन नीडल का प्रयोग करने हेतु उत्तराखंड नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी (UREDA) द्वारा स्थापित जैव-ऊर्जा परियोजनाएँ "असफल" रही हैं, अधिकारियों का कहना है कि इनका प्रयोग करने के लिये उपयुक्त तकनीक अभी तक मौजूद नहीं है।

मुख्य बिंदु:

  • राज्य के अधिकारियों ने जलवायु परिवर्तन से प्रेरित अनावृष्टि और पाइन नीडल (चीड़ की तीक्ष्ण, नुकीली पत्तियाँ) व कृषि अपशिष्ट जैसे कार्बनिक पदार्थों के बढ़ते भंडार जैसे कारकों के संयोजन के कारण होने वाली वार्षिक वनाग्नि के जोखिम को कम करने का प्रायः प्रयास किया है।
  • अप्रैल और मई 2024 में कम वर्षा के कारण सूखे चीड़ के जमा हो जाने से क्षेत्र के वनों में लगी आग से संबंधित याचिकाओं के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तराखंड सरकार की आलोचना की थी।
    • वर्ष 2021 में, राज्य सरकार ने विद्युत उत्पादन के लिये ईंधन के रूप में पाइन नीडल का प्रयोग करके ऊर्जा परियोजनाएँ स्थापित करने की एक योजना की घोषणा की।
    • प्रारंभिक प्रस्ताव में तीन चरणों (कुल मिलाकर लगभग 150 मेगावाट) में 10 किलोवाट से 250 किलोवाट तक की कई इकाइयों को स्थापित करना शामिल था।
    • 58 इकाइयों की स्थापना की आशंका के बावजूद, अब तक केवल छह 250 किलोवाट इकाइयाँ (कुल क्षमता 750 किलोवाट) स्थापित की गई हैं।
  • वर्ष 2023 में, उत्तराखंड सरकार ने कहा कि पाइन नीडल परियोजनाओं से उत्पन्न विद्युत की कमी के कारण वह अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्रय को पूरा करने में असमर्थ थी।
  • उत्तराखंड में पाइन नीडल की प्रचुरता एक मूल्यवान संसाधन प्रदान करती है।
    • आधिकारिक रिकॉर्ड बताते हैं कि राज्य के वन क्षेत्र का लगभग 16.36%, जो लगभग 3,99,329 हेक्टेयर है, में अधिकांश हिस्सा चिड़ पाइन (Pinus Roxburghii) वनों का है।
    • अनुमानतः प्रत्येक वर्ष 15 लाख टन से अधिक पाइन नीडल का उत्पादन होता है।
    • यदि इस अनुमानित राशि का 40% भी, अन्य कृषि अपशिष्टों के साथ, उपयोग किया जा सकता है, तो यह राज्य को अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में बहुत मदद करेगा, साथ ही रोज़गार के अवसर का सृजन करेगा और आजीविका का समर्थन करेगा।

चिर पाइन (Pinus Roxburghii)

  • पाइनस रॉक्सबर्गी (Pinus Roxburghi), जिसे आमतौर पर चिर पाइन के नाम से जाना जाता है, हिमालय क्षेत्र के स्थानीय देवदार-वृक्ष की एक प्रजाति है। यह एक महत्त्वपूर्ण काष्ठ प्रजाति है और इसका व्यापक रूप से व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये उपयोग किया जाता है।
  • यह भारतीय उपमहाद्वीप, विशेष रूप से भारत, नेपाल, भूटान और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में का मूल वृक्ष है।
  • यह एक सदाबहार शंकुवृक्ष/ शंकुधारी वृक्ष है जो 30-50 मीटर की ऊँचाई तक वृद्धि कर सकता है।
  • पाइनस रॉक्सबर्गी की छाल मोटी और परतदार होती है, जिसका रंग लाल-भूरा होता है।
  • पत्तियाँ सुई जैसी नुकीली होती हैं, जो तीन के बंडलों में व्यवस्थित होती हैं और 20-30 सेमी. तक लंबी हो सकती हैं।
  • इस वृक्ष पर कोन/शंकु लगते हैं जिनमें द्विकोषीय लघु बीजाणुधानियाँ (Microsporangia) अथवा बीजांडी शल्क होते हैं।
  • संरक्षण की स्थिति:
    • IUCN स्थिति: कम चिंतनीय (LC)
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