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उत्तराखंड

उत्तराखंड में 6,500 फीट की ऊँचाई पर देखा गया मोर

  • 08 Oct 2024
  • 3 min read

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में उत्तराखंड के बागेश्वर ज़िले में 6,500 फीट की असामान्य ऊँचाई पर मोर देखे गए, जो बढ़ती मानवीय गतिविधियों के कारण पारिस्थितिक परिवर्तन का संकेत है।

मुख्य बिंदु 

  • आमतौर पर 1,600 फीट की ऊँचाई पर दिखने वाला मोर, काफलीगैर (अप्रैल) और कठायतबारा (अक्तूबर) वन शृंखलाओं में देखा गया।
    • विशेषज्ञों का मानना ​​है कि मानवीय विस्तार के कारण अधिक ऊँचाई पर गर्म परिस्थितियाँ इस पक्षी के ऊँचाई की ओर प्रवास का कारण हो सकती हैं।
    • भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India- WII) के विशेषज्ञों का सुझाव है कि यह मौसमी बदलाव हो सकता है, क्योंकि सर्दियों का निम्न तापमान पक्षी को पीछे हटने के लिये प्रेरित कर सकता है।

मोर 

  • ‘पीफाउल’, मोर की विभिन्न प्रजातियों का सामूहिक नाम है। नर मोर को ‘पीकॉक’ (Peacock) कहा जाता है, जबकि मादा मोर को ‘पीहेन’ (Peahen) कहा जाता है।
    • मोर भारत का राष्ट्रीय पक्षी भी है।
    • मोर (पावो क्रिस्टेटस) फासियानिडे परिवार से संबंधित है। ये उड़ने वाले सभी पक्षियों में सबसे बड़े हैं।
      • ‘फासियानिडे’ एक ‘तीतर’ परिवार है, जिसके सदस्यों में जंगली अथवा घरेलू मुर्गी, मोर, तीतर और बटेर शामिल हैं।
    • मोर की दो सबसे अधिक पहचानी जाने वाली प्रजातियाँ हैं:
      • नीला मोर/भारतीय मोर भारत और श्रीलंका में पाया जाता है।
      • हरा या जावाई मोर (पावो म्यूटिकस) म्याँमार (बर्मा) और जावा में पाया जाता है।
  • पर्यावास:
    • भारतीय मोर, मूलतः भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका के कुछ हिस्सों में पाया जाता है।
    • यह प्रजाति वर्तमान में सबसे अधिक मध्य केरल में पाई जाती है, इसके बाद राज्य के दक्षिण-पूर्व और उत्तर-पश्चिम हिस्सों का स्थान है।
      • वर्तमान में केरल में तकरीबन 19% क्षेत्र इस प्रजाति का आवासीय क्षेत्र है और यह वर्ष 2050 तक 40-50% तक बढ़ सकता है।
    • वे वनों के किनारों और कृषियोग्य क्षेत्रों में रहने के लिये अच्छी तरह से अनुकूलित हैं।
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