उत्तराखंड
अधिकारियों ने जोशीमठ में सरकारी भवनों को रेड ज़ोन से स्थानांतरित करने को कहा
- 21 Mar 2024
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में चमोली के ज़िला मजिस्ट्रेट (DM) ने अधिकारियों से भूमि धंसाव प्रभावित जोशीमठ में असुरक्षित रेड ज़ोन में सरकारी भवनों और संपत्तियों का सर्वेक्षण करने तथा उन्हें सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करने के लिये कहा।
मुख्य बिंदु:
- DM ने अधिकारियों से जोशीमठ में रेड ज़ोन के अंतर्गत आने वाले भूस्खलन प्रभावित परिवारों को पुनर्वास के सभी विकल्प प्रदान करने को भी कहा।
- जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति और जोशीमठ मूल निवासी स्वाभिमान संगठन ने राज्य सरकार की पुनर्वास नीति का विरोध किया है तथा 15 मांगें रखी हैं, जिनमें जोशीमठ में भूमि धँसाव की समस्या के लिये उपचारात्मक उपाय शुरू करना व प्रभावित लोगों के लिये विस्थापन भत्ता शामिल है।
जोशीमठ
- जोशीमठ उत्तराखंड के चमोली ज़िले में ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-7) पर स्थित एक पहाड़ी शहर है।
- राज्य के अन्य महत्त्वपूर्ण धार्मिक और पर्यटन स्थलों के अलावा यह शहर बद्रीनाथ, औली, फूलों की घाटी (Valley of Flowers) एवं हेमकुंड साहिब की यात्रा करने वाले पर्यटकों के लिये रात्रि विश्राम स्थल के रूप में भी जाना जाता है।
- जोशीमठ, जो सेना की सबसे महत्त्वपूर्ण छावनियों में से एक है, भारतीय सशस्त्र बलों के लिये अत्यधिक सामरिक महत्त्व रखता है।
- शहर (उच्च जोखिम वाला भूकंपीय क्षेत्र-V) के माध्यम से धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों के संगम, विष्णुप्रयाग से एक उच्च ढाल के साथ बहती हुई धारा आती है।
- यह आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार मुख्य मठों में से एक है, अन्य मठ उत्तराखंड के बद्रीनाथ में जोशीमठ, ओडिशा के पुरी और कर्नाटक के श्रींगेरी में हैं।
जोशीमठ की समस्याओं का कारण:
- पृष्ठभूमि:
- दीवारों और इमारतों में दरार पड़ने की घटना पहली बार वर्ष 2021 में दर्ज की गई, जबकि उत्तराखंड के चमोली ज़िले में भूस्खलन एवं बाढ़ की घटनाएँ निरंतर रूप से देखी जा रही थीं।
- रिपोर्टों के अनुसार, उत्तराखंड सरकार के विशेषज्ञ पैनल ने वर्ष 2022 में पाया कि जोशीमठ के कई हिस्सों में मानव निर्मित और प्राकृतिक कारकों के कारण इस प्रकार की समस्या उत्पन्न हो रही है।
- यह पाया गया कि व्यावहारिक रूप से शहर के सभी ज़िलों में संरचनात्मक खामियाँ हैं और अंतर्निहित सामग्री के नुकसान या गतिविधियों के परिणामस्वरूप पृथ्वी की सतह के धीरे-धीरे या अचानक धँसने अथवा विलय हो जाने जैसे परिणाम देखने को मिलते रहने की संभावना है।
- कारण:
- एक प्राचीन भूस्खलन स्थल: वर्ष 1976 की मिश्रा समिति की रिपोर्ट के अनुसार, जोशीमठ मुख्य चट्टान पर नहीं बल्कि रेत और पत्थर के जमाव पर स्थित है। यह एक प्राचीन भूस्खलन क्षेत्र पर स्थित है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अलकनंदा एवं धौलीगंगा की नदी धाराओं द्वारा कटाव भी भूस्खलन के कारकों के अंतर्गत आते हैं।
- समिति ने भारी निर्माण कार्य, ब्लास्टिंग या सड़क की मरम्मत के लिये बोल्डर हटाने और अन्य निर्माण, पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी।
- भौगोलिक स्थिति: क्षेत्र में बिखरी हुई चट्टानें पुराने भूस्खलन के मलबे जिसमें बाउलडर, नीस चट्टानें और ढीली मृदा शामिल है, से ढकी हुई हैं, जिनकी धारण क्षमता न्यून है।
- ये नीस चट्टानें अत्यधिक अपक्षयित प्रकृति की होती हैं और विशेष रूप से मानसून के दौरान पानी से संतृप्त होने पर इनके रंध्रों पर उच्च दबाव बन जाता है फलस्वरूप इनका संयोजी मूल्य कम हो जाता है।
- निर्माण गतिविधियाँ: निर्माण कार्य में वृद्धि, पनबिजली परियोजनाओं और राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण ने पिछले कुछ दशकों में ढलानों को अत्यधिक अस्थिर बना दिया है।
- भू-क्षरण: विष्णुप्रयाग से बहने वाली धाराओं और प्राकृतिक धाराओं के साथ हो रहा चट्टानी फिसलन, शहर में भूस्खलन के अन्य कारण हैं।
- एक प्राचीन भूस्खलन स्थल: वर्ष 1976 की मिश्रा समिति की रिपोर्ट के अनुसार, जोशीमठ मुख्य चट्टान पर नहीं बल्कि रेत और पत्थर के जमाव पर स्थित है। यह एक प्राचीन भूस्खलन क्षेत्र पर स्थित है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अलकनंदा एवं धौलीगंगा की नदी धाराओं द्वारा कटाव भी भूस्खलन के कारकों के अंतर्गत आते हैं।
- प्रभाव:
- कम-से-कम 66 परिवारों ने शहर छोड़ दिया है, जबकि 561 घरों में दरारें आने की सूचना है। एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि अब तक 3000 से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं।