देश में पहली बार बायो स्रोत से खोजी गई नैनो सिलिका | 15 Jun 2022
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट (NSI) द्वारा गन्ने की खोई की राख में नैनो सिलिका की खोज की गई है। इसे राख से निकालने की तकनीक भी NSIने विकसित की है, जिसे अब पेटेंट कराया जा रहा है।
प्रमुख बिंदु
- NSI के निदेशक प्रोफेसर नरेंद्र मोहन ने बताया कि नैनो सिलिका पार्टिकल्स की खोज और इसकी तकनीक का विकास सीनियर रिसर्च फेलो डॉ. शालिनी कुमारी ने किया है। इस तकनीक को विकसित करने में दो साल लगे हैं।
- अभी तक विभिन्न मिनरल्स स्रोतों से नैनो सिलिका प्राप्त की जाती थी, लेकिन बायो स्रोत से देश में पहली बार इसे खोजा गया है।
- प्रोफेसर नरेंद्र मोहन ने बताया कि तकनीक को पेटेंट करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। गोवा में 28-29 जुलाई को भारतीय चीनी प्रौद्योगिकी संघ के सम्मेलन में भी इस तकनीक को प्रस्तुत किया जाएगा।
- सीनियर रिसर्च फेलो डॉ. शालिनी कुमारी ने इस प्रक्रिया में अम्ल, क्षार और हीट ट्रीटमेंट के चरणों के संबंध में जानकारी दी। नैनो सिलिका तकनीक की जाँच आईआईटी दिल्ली से भी कराई गई। उत्पाद की पुष्टि स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी, एक्सरे विवर्तन विश्लेषण और फूरियर ट्रांसफॉर्म इंफ्रा रेड तकनीक से की गई।
- मिनरल्स स्रोत से जो नैनो सिलिका मिल रही है, उसकी कीमत 700 से 1000 रुपए किलो पड़ती है, लेकिन खोई की राख से मिली नैनो सिलिका की कीमत 100 रुपए प्रति किलो पड़ेगी।
- गन्ने की खोई का इस्तेमाल चीनी मिल के बॉयलर के ईंधन के रूप में होता है। इससे निकलने वाली राख अभी तक गड्ढ़ा पाटने के ही काम आती थी। इसे प्रदूषण का कारक भी माना जाता है। साथ ही, इसका निस्तारण करने में चीनी मिलों का खर्च बढ़ जाता है, लेकिन इससे निकलने वाला नैनो सिलिका पार्टिकल्स प्रदूषण सोखने के भी काम आता है।
- गौरतलब है कि देश में चीनी मिलों से 50 लाख टन खोई प्राप्त होती है, जिसे जलाने पर 15 लाख टन राख प्राप्त होती है। इस राख से लगभग तीन लाख टन सिलिका नैनो पार्टिकल प्राप्त किये जा सकते हैं। खोई की एक किलो राख से 20 फीसदी नैनो सिलिका पार्टिकल्स मिलते हैं।
- नैनो सिलिका पार्टिकल्स दवा उद्योग, पेंट और बैटरी उद्योग, लिथियम आयरन बैटरीज, नैनो फर्टिलाइजर आदि में इस्तेमाल होता है।