बिहार के स्कूलों के लिये तैयार हो रहा बहु-भाषीय शब्दकोश | 28 Oct 2022

चर्चा में क्यों?

27 अक्टूबर, 2022 को बिहार एससीइआरटी के निदेशक सज्जन राज शेखर ने बताया कि राज्य शिक्षा विभाग जनजातीय भाषाओं को सहेजने के लिये एक रोडमैप बनाने के साथ ही नई शिक्षा नीति के तहत क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाने हेतु बिहार में क्षेत्रीय भाषाओं/ बोलियों में कक्षा एक से प्लस टू तक की पढ़ाई के लिये बहु-भाषीय शब्दकोश तैयार कर रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • बिहार एससीइआरटी के निदेशक ने बताया कि नई शिक्षा नीति के तहत बिहार में क्षेत्रीय भाषाओं/बोलियों में कक्षा एक से प्लस टू तक की कक्षाओं को पढ़ाने की रणनीति यह होगी कि मातृभाषा (मदरटंग) में अभ्यस्त स्कूली बच्चे को तमाम विषयों की पढ़ाई उसी की मातृभाषा में पढ़ाई जाए, ताकि वह समझ सके कि उसकी मातृभाषा में संबंधित विषयों के शब्दों या संबंधित अवधारणा को क्या कहा जाता है।
  • उन्होंने बताया कि कक्षा एक से प्लस टू तक की पढ़ाई के लिये बहु-भाषीय शब्दकोश तैयार करने के पीछे का मकसद क्षेत्रीय बोलियों में पढ़ाते-समझाते हुए छात्रों को मुख्यधारा में लाना है, ताकि उच्च शिक्षा में वह भाषा आधारित पिछड़ेपन का शिकार न हों तथा विशेषतौर पर उसका उच्चारण भी बेहतर करने पर ज़ोर दिया जाएगा। इस संदर्भ में शिक्षा विभाग ने विशेषरूप से एससीइआरटी को दिशा-निर्देश भी दिये हैं।
  • इसके तहत बिहार की स्थानीय बोलियों एवं भाषाओं का एक शब्दकोश तैयार किया जाएगा, जिसमें किसी विषय सामग्री को मातृभाषा में उच्चारण वाले शब्द और उससे संबंधित अंग्रेज़ी-हिन्दी के शब्द शामिल किये जाएंगे।
  • शब्दकोश के अलावा एक विशेष रिसोर्स मैटेरियल भी बनाया जाएगा और यह सामग्री शिक्षकों को दी जाएगी, जिससे शिक्षकों को इसमें प्रशिक्षित किया जाएगा। यहाँ शिक्षक बच्चों को विषय मातृभाषा में पढ़ाएगा और इस तरह से अंगिका, बज्जिका, भोजपुरी, मगही, मैथिली आदि क्षेत्रीय भाषाओं में मुख्य धारा के विषय पढ़ाने की कवायद की जाएगी और यह कवायद अगले सत्र तक ही संभव हो सकेगी।
  • ज्ञातव्य है कि बिहार की कुल जनसंख्या में एक फीसदी से कुछ ही अधिक अनुसूचित जनजातियाँ हैं तथा अनुसूचित जाति (वनवासी समुदाय) की मुख्य भाषाएँ मसलन मुंडारी, सदानी, संथाली, मुंगरी, गाराइत, चेरो आदि भाषाएँ हैं। विभिन्न कारणों से ये भाषाएँ बेहद संकटग्रस्त हैं।
  • उल्लेखनीय है कि बिहार में खौंड, बेड़िया, संथाल, खैरवार, गोराइत, कोरवा, मुंडा आदि वनवासी जातियाँ चंपारण, रोहतास, शाहाबाद, पूर्णिया, भागलपुर, सहरसा, भोजपुर, मुंगेर, जमुई, कटिहार और बक्सर आदि ज़िलों में रहती हैं।