बिहार की पहचान मैथिली बत्तख | 21 Feb 2022
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तर बिहार में पाए जाने वाली मैथिली बत्तख का नेशनल ब्यूरो एनिमल जेनेटिक रिसोर्स करनाल में नाम दर्ज़ कर लिया गया है। मैथिली बत्तख अब बिहार की पहचान बन गए हैं।
प्रमुख बिंदु
- उल्लेखनीय है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्वी अनुसंधान परिसर के वैज्ञानिकों की टीम ने छह साल तक बत्तख पर रिसर्च करने के बाद नामकरण किया है।
- ये बत्तख देशभर में पसंद किए जा रही हैं। मैथिली बत्तख पर काम करने वाली डॉ. रीना कमल ने बताया कि पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज और मोतिहारी क्षेत्र में बत्तख का देसी नामकरण किया गया है।
- यह अपने इस आकर्षक रंग, हल्के वज़न और यहाँ के वातावरण में ज़िंदा रहती हैं। इनके इलाज में कम खर्च होता है। यही नहीं कम ज़मीन पर इन्हें पाला जा सकता है। इनका मीट औषधीय गुणों से भरपूर है। राज्य में 50-60 हज़ार मैथिली बत्तख हैं। मत्स्यपालन में भी मैथिली बत्तख साथी बन रहे हैं। इन्हें दूसरी विदेशी नस्ल की बत्तखों से पाल खाने से बचाया जा रहा है। ये बत्तख कम अंडे देती हैं, इसलिये किसान दूसरी बत्तखों से पाल खिला देते हैं। इससे मैथिली बत्तखों के अस्तित्व पर खतरा मँडरा रहा है। आईसीएआर किसानों को जागरूक कर इनको विलुप्त होने से बचाने की कोशिश में लगा है।
- संस्थान में मैथिली बत्तख की पहचान के साथ इसके विकास और अंडे की क्षमता को बढ़ाने पर कार्य किया जा रहा है।