महर्षि दधीचि कुंड | 18 Mar 2025
चर्चा में क्यों?
10 मार्च, 2025 को उत्तर प्रदेश सरकार ने महर्षि दधीचि कुंड को राजकीय पर्यटन केंद्र बनाने की घोषणा की।
मुख्य बिंदु
- दधीचि कुंड के बारे में:
- दधीचि कुंड नैमिषारण्य से लगभग 12 किलोमीटर दूर मिश्रिख क्षेत्र में स्थित है।
- ऐसी मान्यता है कि संसार के सभी तीर्थों का जल इस कुंड में मिश्रित होता है, इसीलिये इस क्षेत्र का नाम मिश्रिख पड़ा।
- यह स्थान महर्षि दधीचि से जुड़ा है, जिन्होंने अपनी अस्थियाँ दान कर वृत्रासुर के वध हेतु देवताओं को वज्र प्रदान किया था।
- दधीचि कुंड लगभग 2 एकड़ भूमि में फैला हुआ है। इसके समीप महर्षि दधीचि का भव्य मंदिर स्थित है, जिसमें उनकी विभिन्न मुद्राओं में प्रतिमाएँ स्थापित हैं। मंदिर की वास्तुकला और इसके चारों ओर का वातावरण इसे एक शांत और आध्यात्मिक केंद्र बनाता है।
- महर्षि दधीचि
- वह एक महान तपस्वी, वेद-शास्त्रों के ज्ञाता एवं परोपकारी ऋषि थे।
- माना जाता है कि वे ऋषि अथर्वा और माता शांति के पुत्र थे।
- उन्होंने संपूर्ण जीवन शिव भक्ति और लोककल्याण में व्यतीत किया।
- जब असुर वृत्रासुर के संहार के लिये देवताओं को उनके अस्थि-वज्र की आवश्यकता हुई, तो उन्होंने योगबल से अपना शरीर त्याग दिया।
- नैमिषारण्य
- उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले में स्थित एक प्राचीन तीर्थ स्थल है।
- यह स्थान गोमती नदी के किनारे स्थित है और इसे ऋषियों की तपोभूमि कहा जाता है।
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, 88 हजार ऋषियों ने यहाँ तपस्या की थी, जिसके कारण इसे हिंदू धर्म में पवित्र स्थल माना जाता है।