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छत्तीसगढ़

महुआ फूलों को लेकर कोया जनजाति में संघर्ष

  • 05 Jun 2024
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

गोदावरी घाटी में कोया जनजाति को सांस्कृतिक संकट का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि विशेष प्रवर्तन ब्यूरो के छापों के कारण महुआ शराब पीने की उनकी प्रिय परंपरा को खतरा उत्पन्न हो गया है।

मुख्य बिंदु:

  • महुआ, एक उष्णकटिबंधीय वृक्ष जिसे वैज्ञानिक रूप से मधुका लॉन्गिफोलिया (Madhuca longifolia) के नाम से जाना जाता है, भारत में विभिन्न आदिवासी समूहों की परंपराओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • कोया समुदाय के बीच, यह वृक्ष पूजनीय है और विभिन्न समारोहों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गर्मियों की शुरुआत में इसके फूल खिलते हैं और मुख्य रूप से शराब बनाने के लिये उपयोग किये जाते हैं।
    • सूखे फूल उन लोगों के लिये आय का एक प्रमुख स्रोत हैं जो उन्हें इकट्ठा करते हैं। गोदावरी घाटी में, कोया महुआ नट्स से खाना पकाने का तेल बनाते हैं।
  • यह बस्तर (छत्तीसगढ़) के आदिवासी क्षेत्रों में एक प्रमुख वन वृक्ष है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • महुआ के फूल शर्करा का एक समृद्ध स्रोत हैं और कहा जाता है कि इनमें विटामिन, खनिज एवं कैल्शियम होते हैं।
  • फूलों को किण्वित और आसुत किया जाता है जिससे मादक शराब बनती है जिसे 'देशी बीयर (Country beer)' भी कहा जाता है।
    • अनुमान है कि महुआ फूल के वार्षिक उत्पादन का 90% पेय पदार्थ बनाने की प्रक्रिया में उपयोग किया जाता है।

कोया जनजाति

  • कोया भारत के कुछ बहु-नस्लीय और बहुभाषी आदिवासी समुदायों में से एक हैं।
  • वे आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों में गोदावरी नदी के दोनों किनारों पर जंगलों, मैदानों व घाटियों में रहते हैं।
  • ऐसा कहा जाता है कि कोया उत्तर भारत के बस्तर में अपने मूल निवास से मध्य भारत में चले आए थे।
  • भाषा:
    • कोया भाषा, जिसे कोयी भी कहा जाता है, एक द्रविड़ भाषा है। यह गोंडी से बहुत मिलती-जुलती है और इस पर तेलुगु का बहुत प्रभाव है।
    • अधिकांश कोया, कोयी के अलावा गोंडी या तेलुगु भी बोलते हैं।
  • व्यवसाय:
    • परंपरागत रूप से, वे पशुपालक और झूम कृषि करने वाले किसान थे, लेकिन आजकल, वे पशुपालन तथा मौसमी वन संग्रह के साथ-साथ स्थायी कृषि करने लगे हैं।
    • वे ज्वार, रागी, बाजरा और अन्य मोटे अनाज उगाते हैं
  • समाज और संस्कृति:
    • सभी कोया गोत्रम नामक पाँच उप-विभागों में से एक से संबंधित हैं। प्रत्येक कोया एक कुल में पैदा होता है और वह उसे छोड़ नहीं सकता।
    • कोयाओं का एक पितृवंशीय और पितृस्थानीय परिवार होता है। परिवार को "कुटुम" कहा जाता है। एकल परिवार प्रमुख प्रकार है।
    • कोयाओं में एकविवाह प्रचलित है।
    • कोया अपने स्वयं के जातीय धर्म का पालन करते हैं लेकिन कई हिंदू देवी-देवताओं की भी पूजा करते हैं।
    • कई कोया देवता महिला हैं, जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण "धरती माता" है।
    • वे ज़रूरतमंद परिवारों की सहायता करने और खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिये गाँव स्तर पर सामुदायिक निधि और अनाज बैंक बनाए रखते हैं।
    • कोया मृतकों को या तो दफनाते हैं या उनका दाह संस्कार करते हैं। वे मृतकों की याद में मेनहिर बनाते हैं।
    • उनके मुख्य त्योहार विज्जी पांडुम (धरती तथा धान बीज की पूजा का उत्सव) और कोंडाला कोलुपु (पहाड़ी देवताओं को प्रसन्न करने का त्योहार) हैं।
    • कोया त्योहारों और विवाह समारोहों में भाग लेते हैं तथा एक जीवंत, ज़ोरदार नृत्य करते हैं जिसे पर्माकोक (बाइसन हॉर्न डांस) के रूप में जाना जाता है।

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