राजस्थान
पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र की शासी परिषद और कार्यकारी परिषद की संयुक्त बैठक
- 30 Jan 2023
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चर्चा में क्यों?
29 जनवरी, 2023 को राजस्थान के राज्यपाल एवं पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के अध्यक्ष कलराज मिश्र ने गोवा में पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र की शासी परिषद और कार्यकारी परिषद की संयुक्त बैठक में कलाकारों को वर्षों से दिये जा रहे डॉक्टर कोमल कोठारी पुरस्कार के मानदेय में समय के अनुरूप वृद्धि करने के निर्देश देते हुए इस संबंध में मौके पर ही प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी।
प्रमुख बिंदु
- राज्यपाल की मंजूरी के बाद पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक कला केंद्र द्वारा दिये जाने वाले कोमल कोठारी पुरस्कार की ढाई लाख रुपए की राशि एक-से-अधिक लोगों को दिये जाने पर अब बाँटकर नहीं दी जाएगी। यदि दो कलाकारों को यह सम्मान प्रदान किया जाएगा तो दोनों को ढाई-ढाई लाख रुपए राशि प्रदान की जाएगी।
- इस बैठक में केंद्र के सदस्य राज्यों राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा एवं केंद्रशासित प्रदेश दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन दीव से शाषी निकाय और कार्यकारी निकाय के सदस्य सम्मिलित हुए।
- इस अवसर पर केंद्र द्वारा 2023 का फेस्टिवल ऑफ द नॉर्थ-ईस्ट ओक्टेव कार्यक्रम गोवा में किये जाने की भी घोषणा की। नॉर्थ-ईस्ट के कलाकारों की कला प्रोत्साहन का यह कार्यक्रम प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है।
- राज्यपाल ने बैठक में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के अंतर्गत पारंपरिक और लुप्त होती आदिवासी कलाओं के संरक्षण, प्रलेखन और विभिन्न कला रूपों के अधिकाधिक प्रसार के लिये गंभीर होकर कार्य करने के भी निर्देश दिये।
- इस अवसर पर राज्यपाल ने केंद्र के तहत राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, दमन दीव, दादरा एवं नगर हवेली से जुड़ी लोक, पारंपरिक और आदिवासी कलारूपों के संरक्षण, कलाकारों की परस्पर आदान-प्रदान गतिविधियों को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया।
- उल्लेखनीय है कि राजस्थान के जाने-माने कला मर्मज्ञ पद्म भूषण डॉ. कोमल कोठारी की स्मृति में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर द्वारा ‘डॉ. कोमल कोठारी स्मृति लाइफ टाइम अचीवमेंट लोक कला पुरस्कार’ प्रदान किया जाता है।
- गौरतलब है कि डॉ. कोमल कोठारी को ‘कोमल दा’ के नाम से भी जाना जाता है। इन्होंने लोक कलाओं के संरक्षण के लिये अहम कार्य किये। इन्होंने राजस्थान की लोक कलाओं, लोक संगीत और वाद्यों के संरक्षण, लुप्त हो रही कलाओं की खोज आदि के लिये बोरूंदा में रूपायन संस्था की स्थापना की थी।