भारतीय तकनीक से सुधरेगी 34 देशों की मिट्टी-पानी की गुणवत्ता | 21 Nov 2023

चर्चा में क्यों?

20 नवंबर, 2023 को करनाल स्थित केंद्रीय मृदा एवं लवणता अनुसंधान संस्थान (सीएसएसआरआई) के निदेशक डॉ. आरके यादव ने बताया कि संस्थान की ओर से विकसित तकनीक, प्रौद्योगिकी और लवण सहनशील फसलों की किस्मों से 34 देश अपनी भूमि और भूमिगत जल की गुणवत्ता सुधारेंगे।

प्रमुख बिंदु

  • सीएसएसआरआई द्वारा विकसित ये भारतीय तकनीक अब तक 25 देशों तक पहुँच चुकी है, और अभी सात और देशों को तकनीक का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
  • विदित हो कि भारत में लगभग 67.4 लाख हेक्टेयर भूमि लवणता और क्षारीय से प्रभावित है, वहीं 34 अफ्रीकी एवं एशियाई देशों में लाखों हेक्टेयर भूमि और भूमिगत जल में लवणता और क्षारीयता बढ़ रही है, जिससे यहाँ की भूमि भी बंजर होने की ओर अग्रसर है।
  • अंतर्राष्ट्रीय संस्था अफ्रीकी-एशियाई ग्रामीण विकास संगठन (एएआरडीओ) यानी आरडू ने अपने सभी 34 सदस्य देशों को लवण एवं क्षारीयता प्रभावित भूमि व भूमिगत निम्न गुणवत्ता वाले जल के सुधार के लिये करनाल स्थित सीएसएसआरआई की ओर से विकसित भूमि एवं जल सुधार तकनीक का प्रशिक्षण दिलाने का अनुबंध किया है।
  • ये प्रशिक्षण पिछले 13 सालों से चल रहा है। अब तक 25 देशों के 100 वैज्ञानिकों, कृषि विशेषज्ञों को इस तकनीक का प्रशिक्षण दिया जा चुका है।
  • सीएसएसआरआई करनाल के निदेशक डॉ. आरके यादव ने बताया कि हाल ही में प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिये सात देशों (बांग्लादेश, श्रीलंका, मॉरीशस, केन्या, जाम्बिया, जॉर्डन और एस्वातिनी शामिल) से नौ विदेशी वैज्ञानिक व कृषि विशेषज्ञ अधिकारी संस्थान में पहुँचे हैं, जिन्हें तकनीकों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
  • सीएसएसआरआई करनाल की ओर से विकसित तकनीकों में क्षारीय भूमि के सुधार के लिये जिप्सम, सल्फर, एफजीडी जिप्सम तकनीक है तो लवणीय भूमि के सुधार के लिये सब सरफेस ड्रेनेज, ड्रेनज तकनीक और लवण सहनसील फसलों की किस्में, उनके बीज हैं तो निम्न गुणवत्ता वाले जल के सुधार के लिये जिप्सम बेड, जिप्सम ब्रेकेट्स व रैपिड एसिडूलेरिंग मैटेरियल और कल्चर आदि कई तकनीक, प्रौद्योगिकी व विधियाँ शामिल हैं।