हरियाणा
हरियाणा वन जनगणना
- 18 Apr 2024
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चर्चा में क्यों?
पहली राज्य-व्यापी वृक्ष गणना के अनुसार, हरियाणा में निर्दिष्ट वनों के बाहर लगभग 4.1 करोड़ पेड़ हैं, जिनमें नीम, शीशम, पीपल, बरगद और नीलगिरी सबसे सामान्य प्रजातियाँ हैं।
मुख्य बिंदु:
- राज्य में हरित आवरण प्रबंधन के संबंध में सुविज्ञ निर्णय लेने में अधिकारियों की सहायता के लिये लगभग 150 सर्वेक्षक, टैक्सोनोमिस्ट और तकनीकी कर्मचारी 13 महीने की अवधि के लिये परियोजना में लगे हुए थे।
- यह वन क्षेत्रों के बाहर प्रत्येक ज़िले में वृक्षों की संख्या पर डेटा प्रदान करता है। वृक्षों की सबसे अधिक संख्या यमुनानगर, अंबाला, सिरसा, भिवानी और हिसार में पाई गई।
- फरीदाबाद की गिनती सबसे कम थी, इसके बाद कुरुक्षेत्र, पलवल, गुड़गाँव और रोहतक थे।
- अपने कुल क्षेत्रफल का केवल 6.7% हिस्सा कवर करने वाले हरियाणा में भारत में सबसे कम वन और वृक्ष क्षेत्र है। राष्ट्रीय वन नीति का लक्ष्य प्रत्येक राज्य के लिये 20% कवरेज का है।
- हरियाणा के 22 ज़िलों में से 21 में 20% से कम वन और वृक्ष आवरण है।
- करनाल 1.8% के साथ सबसे निचले स्थान पर है, पंचकुला 47.4% के साथ सूची में शीर्ष पर है और गुड़गाँव 12.9% के साथ छठे स्थान पर है।
- भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में वृक्ष आवरण में भी तेज़ी से गिरावट देखी जा रही है, वर्ष 2019 से 2020 तक वृक्ष आवरण (वन क्षेत्र को छोड़कर) में 140 वर्ग किमी. की कमी आई है।
- वन विभाग के अधिकारी जनगणना डेटा का उपयोग करके संरक्षण प्रयासों को बढ़ाने की योजना बना रहे हैं।
- वे इस तर्क का समर्थन कर रहे हैं कि सरकार कम-से-कम 25% पंचायत और सामान्य भूमि वृक्षारोपण के लिये निर्धारित करे, संस्थानों को अपने क्षेत्र का 33% वृक्ष कवर के तहत रखना चाहिये तथा शहरी स्थानीय निकायों को हैदराबाद की पहल से प्रेरणा लेते हुए शहरों में हरित स्थान विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- उच्च गुणवत्ता वाले पौधों के महत्त्व पर ज़ोर देते हुए, अधिकारियों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वृक्षों के अस्तित्व और विकास को सुनिश्चित करने हेतु उनका उपयोग करना महत्त्वपूर्ण है।
राष्ट्रीय वन नीति
- भारत के वन वर्तमान में राष्ट्रीय वन नीति, 1988 द्वारा शासित होते हैं
- इसके केंद्र में पर्यावरण संतुलन और आजीविका है।
- मुख्य विशेषताएँ और लक्ष्य:
- पारिस्थितिक संतुलन के संरक्षण और बहाली के माध्यम से पर्यावरणीय स्थिरता को बनाए रखना
- प्राकृतिक विरासत का संरक्षण (मौजूदा)।
- नदियों, झीलों और जलाशयों के जलग्रहण क्षेत्रों में मृदा के कटाव तथा अनाच्छादन की जाँच करना।
- राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों और तटीय इलाकों में रेत के टीलों के विस्तार की जाँच करना।
- वनीकरण और सामाजिक वानिकी के माध्यम से वन/वृक्ष आवरण में पर्याप्त वृद्धि करना।
- ग्रामीण और जनजातीय जनसंख्या की ईंधन, लकड़ी, चारा, लघु वन उपज, मृदा तथा इमारती लकड़ी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये कदम उठाना।
- राष्ट्रीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये वनों की उत्पादकता बढ़ाना।
- वन उपज के कुशल उपयोग और लकड़ी के इष्टतम उपयोग को प्रोत्साहित करना।
- कार्य के अवसरों का सृजन, महिलाओं की भागीदारी।
भारतीय वन सर्वेक्षण
- भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI), देहरादून वर्ष 1987 से वन आवरण का द्विवार्षिक (प्रत्येक दो वर्ष में एक बार) आकलन कर रहा है और निष्कर्ष भारत राज्य वन रिपोर्ट (ISFR) में प्रकाशित किये जाते हैं।
- ISFR 2021 के नवीनतम आकलन के अनुसार, भारत का कुल वन और वृक्ष आवरण 8,09,537 वर्ग किलोमीटर है जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 24.62% है।
- विशेष रूप से, यह ISFR 2019 मूल्यांकन की तुलना में 2261 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि दर्शाता है जो वन संरक्षण प्रयासों में सकारात्मक प्रगति का संकेत देता है।