ज्ञानवापी मस्जिद विवाद | 13 May 2022
चर्चा में क्यों?
12 मई, 2022 को ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर वाराणसी कोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए मस्जिद के सर्वे के लिये नियुक्त किये गए एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा को हटाए जाने से इनकार करने के साथ ही 17 मई से पहले ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने का सर्वे कराने का आदेश दिया है।
प्रमुख बिंदु
- यह प्रचलित मान्यता है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण सन् 1669 में मुगल शासक औरंगज़ेब ने प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर को तोड़कर करवाया था। उल्लेखनीय है कि साकिब खाँ की पुस्तक ‘यासिर आलमगीरी’ में इस बात का उल्लेख भी है कि औरंगज़ेब ने 1669 में गवर्नर अबुल हसन को हुक्म देकर मंदिर को तोड़वा दिया था।
- ज्ञानवापी मस्जिद का मामला 1991 से अदालत में है, जब काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास समेत तीन लोगों ने वाराणसी के सिविल जज की अदालत में एक मुकदमा दायर कर दावा किया था कि औरंगज़ेब ने भगवान विश्वेश्वर के मंदिर को तोड़कर उस पर मस्जिद बना दी इसलिये यह ज़मीन उन्हें वापस लौटाई जाए।
- वहीं 18 अगस्त, 2021 को वाराणसी की ही अदालत में 5 महिलाओं ने माँ श्रृंगार गौरी के मंदिर में पूजा-अर्चना की मांग को लेकर एक याचिका दायर की थी, जिसे स्वीकार करते हुए अदालत ने श्रृंगार गौरी मंदिर की मौज़ूदा स्थिति को जानने के लिये एक कमीशन का गठन किया।
- इसी संदर्भ में कोर्ट द्वारा श्रृंगार गौरी की मूर्ति और ज्ञानवापी परिसर में वीडियोग्राफी कराकर सर्वे रिपोर्ट देने को कहा था, जिसको लेकर हंगामा खड़ा हो गया है, क्योंकि मुस्लिम पक्ष द्वारा सर्वे के लिये नियुक्त किये गए कोर्ट कमिश्नर की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किये गए थे।
- हिंदू पक्ष के वकील विजय शंकर रस्तोगी ने कोर्ट में सबूत के तौर पूरे ज्ञानवापी परिसर का नक्शा प्रस्तुत किया है, जिसमें मस्जिद के प्रवेश द्वार के बाद चारों ओर हिंदू-देवताओं के मंदिरों का ज़िक्र है, साथ ही इसमें विश्वेश्वर मंदिर, ज्ञानकूप, बड़े नंदी तथा व्यास परिवार के तहखाने का उल्लेख है। इसी तहखाने के सर्वे और वीडियोग्राफी को लेकर विवाद खड़ा हो गया है।
- वहीं मुस्लिम पक्ष का कहना है कि 1991 के धर्मस्थल कानून के तहत इस विवाद पर कोई फैसला नहीं दिया जा सकता है।
- गौरतलब है कि उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 की धारा 3 के तहत पूजास्थल, यहाँ तक कि उसके खंड को एक अलग धार्मिक संप्रदाय या एक ही धार्मिक संप्रदाय के अलग वर्ग के पूजास्थल में परिवर्तित करने को प्रतिबंधित किया गया है।
- इस अधिनियम की धारा 4(2) में कहा गया है कि पूजास्थल की प्रकृति को परिवर्तित करने से संबंधित सभी मुकदमे, अपील या अन्य कार्रवाइयाँ (जो 15 अगस्त, 1947 तक लंबित थीं) इस अधिनियम के लागू होने के बाद समाप्त हो जाएंगी और ऐसे मामलों पर कोई नई कार्रवाई नहीं की जा सकती।
- हालाँकि यदि पूजास्थल की प्रकृति में बदलाव 15 अगस्त, 1947 (अधिनियम के लागू होने के बाद) की कट-ऑफ तारीख के बाद हुआ हो, तो उस स्थिति में कानूनी कार्रवाई शुरू की जा सकती है। अयोध्या के विवादित स्थल (राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद) को इस अधिनियम से छूट दी गई थी।