उत्तराखंड
उत्तराखंड में गठित होगा उत्पादों के लिये जीआई बोर्ड
- 22 Aug 2022
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चर्चा में क्यों?
21 अगस्त, 2022 को उत्तराखंड जैविक विकास परिषद के प्रबंध निदेशक विनय कुमार ने बताया कि राज्य के स्थानीय उत्पादों की पहचान और मार्केटिंग को बढ़ावा देने के लिये जीआई (भौगोलिक संकेत) बोर्ड के गठन का खाका तैयार कर लिया गया है।
प्रमुख बिंदु
- विनय कुमार ने बताया कि आगामी कैबिनेट बोर्ड की बैठक में इसके गठन को हरी झंडी मिल सकती है। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश में जीआई बोर्ड गठित करने की घोषणा की थी। कृषि विभाग ने बोर्ड बनाने का प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेज भी दिया है।
- प्रस्तावित बोर्ड में एक अध्यक्ष के अलावा कई वरिष्ठ अधिकारी सदस्य होंगे। बोर्ड का काम स्थानीय उत्पादों को चयनित कर जीआई पंजीकरण करने का रहेगा। जीआई टैग मिलने से नकली उत्पाद बाज़ार में बेचने से बचा जा सकेगा।
- बोर्ड में एक या दो विशेष आमंत्रित सलाहकार व विशेषज्ञ भी सदस्य के रूप में शामिल होंगे। कृषि विभाग व उत्तराखंड जैविक उत्पाद परिषद के अधिकारी और कर्मचारी बोर्ड में काम करेंगे। इससे सरकार पर बोर्ड के गठन से कोई अतिरिक्त व्यय भार नहीं पड़ेगा।
- राज्य सरकार का मानना है कि प्रदेश में 100 से अधिक उत्पाद ऐसे हैं, जिन्हें जीआई टैग दिया जा सकता है। इनमें अनाज, दालें, तिलहन, मसाले, फल, सब्जी, हस्तशिल्प एवं हथकरघा उत्पाद, परंपरागत वाद्ययंत्र अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं। जीआई टैग मिलने से इन उत्पादों को कानूनीतौर पर संरक्षण मिल जाएगा।
- गौरतलब है कि अब तक प्रदेश के नौ उत्पादों को जीआई टैग प्राप्त हुआ है। इनमें तेजपात, बासमती चावल, ऐपण आर्ट, मुनस्यारी का सफेद राजमा, रिंगाल क्राफ्ट, थुलमा, भोटिया दन, च्यूरा ऑयल तथा टम्टा शामिल हैं।
- इसके अलावा 14 अन्य उत्पादों के जीआई पंजीकरण की प्रक्रिया चल रही है। इनमें बेरीनाग चाय, मंडुवा, झंगोरा, गहत, लाल चावल, काला भट्ट, माल्टा, चौलाई, लखोरी मिर्च, पहाड़ी तुअर दाल, बुरांश जूस, सज़ावटी मोमबत्ती, कुमाऊँनी पिछोड़ा, कंडाली (बिच्छू बूटी) फाइबर शामिल हैं।
- विदित है कि क्षेत्रविशेष के उत्पादों को भौगोलिक संकेत दिया जाता है, जिसका एक विशेष भौगोलिक महत्त्व व स्थान होता है। उसी भौगोलिक मूल के कारण उत्पादविशेष गुण व पहचान रखता है। जीआई टैग मिलने के बाद कोई अन्य उत्पाद की नकल नहीं कर सकता है।