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बिहार

पश्चिमी चंपारण के सुगंधित मर्चा चावल को मिला जीआई टैग

  • 06 Apr 2023
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

4 अप्रैल, 2023 को मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार बिहार के पश्चिमी चंपारण ज़िले के सुगंधित मर्चा/ मेरचा धान को ज्योग्रॉफिकल इंडीकेशन (जीआई) टैग प्राप्त हुआ है।

प्रमुख बिंदु 

  • गौरतलब है कि धान की इस स्वदेशी किस्म का उत्पादन केवल बिहार के पश्चिमी चंपारण क्षेत्र में ही होती है। यह जानकारी जीआई जर्नल में प्रकाशित की गयी है।
  • जीआई टैग के लिये आवेदन करने वाले मर्चा धान उत्पादक प्रगतिशील समूह को अब केवल औपचारिक तौर पर जीआई टैग का प्रमाण-पत्र मिलना बाकी रह गया है। प्रमाण-पत्र अगस्त में मिलेगा।
  • मर्चा/ मेरचा धान की इस विशेष किस्म का आकार काली मिर्च से मिलता-जुलता होता है। यह धान बेहद सुगंधित और स्वादिष्ट होता है। इससे बनने वाला सुगंधित चूड़े की देश में ख्याति है।
  • इसके उत्पादक क्षेत्र पश्चिमी चंपारण ज़िले के मैनाटांड़, गौनाहा, नरकटियागंज, रामनगर, चनपटिया ब्लॉक है। इसकी औसत उपज 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इस धान का पौधा लंबा होता है। इसकी उपज 145-150 दिन में तैयार हो जाती है। इस तरह पश्चिमी चंपारण के 18 ब्लॉक में से छह ब्लॉक में इसकी खेती की जाती है।
  • उल्लेखनीय है कि इससे पहले बिहार के कृषि एवं उद्यानिकी के उत्पादों- जर्दालू आम, भागलपुर का कतरनी चावल, मुजफ्फरपुर की शाही लीची, मगध क्षेत्र का मगही पान और मिथिला का मखाना को जीआई टैग मिल चुका है।
  • इसके अलावा हस्तशिल्प में मंजूषा कला, सुजनी कढ़ाई का काम, एप्लिक खटवा वर्क, सिक्की घास के उत्पाद, भागलपुरी सिल्क, मधुबनी पेंटिंग और सिलाव के खाजा को भी जीआई टैग हासिल हो चुका है।
  • जीआई टैग मिलने से संबंधित उत्पाद की पहचान वैश्विक फलक पर पहचानी जाती है। निर्यात को बढ़ावा मिलता है। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है। उत्पाद का बेहतर मूल्य मिलता है। जीआई टैग मिलने से उत्पाद को सुरक्षा और उसके संरक्षण की दिशा में सरकार किसानों का सहयोग करती है तथा एग्रो टूरिज्म भी बढ़ता है।

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