खरीफ फसल की सुरक्षा के लिये इस वर्ष भी प्रदेश में चलाया जाएगा ‘रोका-छेका अभियान’ | 10 Jul 2023
चर्चा में क्यों?
7 जुलाई, 2023 को राज्य में खुले में चराई कर रहे पशुओं के नियंत्रण और उनसे खरीफ फसलों की सुरक्षा के लिये छत्तीसगढ़ के कृषि विभाग ने सभी कलेक्टरों और ज़िला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को गाँवों में 17 जुलाई तक स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप ‘रोका-छेका अभियान’चलाने के दिशा-निर्देश जारी कर दिये हैं।
प्रमुख बिंदु
- कृषि विभाग द्वारा जारी निर्देश में कहा गया है कि विगत वर्ष की भांति इस वर्ष भी रोका-छेका प्रथा के अनुसार व्यवस्था की सुनिश्चितता की जाए। इसके लिये ग्राम स्तर पर 17 जुलाई तक स्थानीय परिस्थिति के अनुरूप रोका-छेका अभियान चलाकर सभा आयोजित की जाए। साथ ही सभी निर्मित गौठानों में 30 जुलाई से पहले चारागाह की स्थापना की जाए। जहाँ चारा उत्पादन हो।
- अधिकारियों को रोका-छेका अभियान के तहत ग्राम स्तर पर बैठकें आयोजित करने को कहा गया है, जिसमें ‘रोका छेका’प्रथा के अनुरूप पशुओं से फसल बचाव का निर्णय ग्राम सरपंच, पंच, जनप्रतिनिधियों तथा ग्रामीणों के द्वारा लिया जाएगा।
- फसल को चराई से बचाने हेतु पशुओं को गौठान में नियमित रूप से लाये जाने के संबध में प्रत्येक गौठान ग्राम में मुनादी कराने और गौठानों में पशु चिकित्सा तथा स्वास्थ्य शिविर का आयोजन के निर्देश भी दिये गए हैं।
- जारी निर्देश में ‘रोका छेका’प्रथा के अंतर्गत गौठानों में पशुओं के प्रबंधन व रखरखाव की उचित व्यवस्था हेतु गौठान प्रबंधन समिति की बैठक आयोजित करने को भी कहा गया है। ऐसे गौठान जो सक्रिय परिलक्षित नहीं हो रहे हों, वहाँ आवश्यकतानुसार प्रभारी मंत्री के अनुमोदन से समिति में संशोधन कर सदस्यों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने के निर्देश दिये गए हैं।
- गौरतलब है कि राज्य में खुले में चराई कर रहे पशुओं के नियंत्रण और उनसे खरीफ फसलों की सुरक्षा के लिये इस वर्ष भी रोका-छेका का अभियान शुरू किया जा रहा है। रोका-छेका छत्तीसगढ़ की पुरानी पंरपरा है।
- मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर इसे अभियान के रूप में राज्य में शुरू किया गया है, जिसके बड़े ही उत्साहजनक परिणाम मिले हैं। इसे ध्यान में रखते हुए राज्य में चालू वर्ष के दौरान यह अभियान पुन: चलाया जा रहा है।
- उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ राज्य में खरीफ फसल बुआई कार्य के पूर्व खुले में चराई कर रहे पशुओं के नियंत्रण के लिये ‘रोका छेका’ प्रथा प्रचलित है, जिसमें फसल बुआई को बढ़ावा देने तथा पशुओं के चरने से फसल को होने वाली हानि से बचाने के लिये पशुपालक तथा ग्रामवासियों द्वारा पशुओं को बांधकर रखने पहटिया (चरवाहा) की व्यवस्था इत्यादि कार्य किया जाता है। इस प्रयास से न सिर्फ किसान जल्दी बुआई का काम कर पाते हैं, बल्कि दूसरी फसल लेने हेतु भी प्रेरित होते हैं।