उत्तराखंड
चिपको आंदोलन के 50 वर्ष
- 23 Apr 2024
- 5 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वर्ष 1973 की शुरुआत में उत्तराखंड में शुरू हुआ चिपको आंदोलन अपनी 50वीं वर्षगाँठ मना रहा है।
मुख्य बिंदु:
- यह एक अहिंसक आंदोलन था जो वर्ष 1973 में उत्तर प्रदेश के चमोली ज़िले (अब उत्तराखंड) में शुरू हुआ था।
- आंदोलन का नाम 'चिपको' 'आलिंगन' शब्द से आया है, क्योंकि ग्रामीणों ने पेड़ों को गले लगाया और उन्हें काटने से बचाने के लिये घेर लिया
- इस आंदोलन का नाम 'चिपको' 'वृक्षों के आलिंगन' के कारण पड़ा, क्योंकि आंदोलन के दौरान ग्रामीणों द्वारा पेड़ों को गले लगाया गया तथा वृक्षों को कटने से बचाने के लिये उनके चारों और मानवीय घेरा बनाया गया।
- जंगलों को संरक्षित करने हेतु महिलाओं के सामूहिक एकत्रीकरण के लिये इस आंदोलन को सबसे ज़्यादा याद किया जाता है। इसके अलावा इससे समाज में अपनी स्थिति के बारे में उनके दृष्टिकोण में भी बदलाव आया।
- इसकी सबसे बड़ी जीत लोगों को जंगलों पर उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना था और कैसे ज़मीनी स्तर की सक्रियता पारिस्थितिकी तथा साझा प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकती है।
- इसकी सबसे बड़ी जीत लोगों के वनों पर अधिकारों के बारे में जागरूक करना तथा यह समझाना था कैसे ज़मीनी स्तर पर सक्रियता पारिस्थितिकी और साझा प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकती है।
- इसने वर्ष 1981 में 30 डिग्री ढलान से ऊपर और 1,000 msl (माध्य समुद्र तल-msl) से ऊपर के वृक्षों की व्यावसायिक कटाई पर प्रतिबंध को प्रोत्साहित किया।
भारत में प्रमुख पर्यावरण आंदोलन
नाम |
वर्ष |
स्थान |
प्रमुख |
विवरण |
बिशनोई आंदोलन |
1700 |
राजस्थान का खेजड़ी, मारवाड़ क्षेत्र |
अमृता देवी |
|
चिपको आंदोलन |
1973 |
उत्तराखंड |
सुंदरलाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट |
खेजड़ी (जोधपुर) राजस्थान में वर्ष 1730 के आस-पास अमृता देवी विश्नोई के नेतृत्व में लोगों ने राजा के आदेश के विपरीत पेड़ों से चिपककर उनको बचाने के लिये आंदोलन चलाया था। इसी आंदोलन ने आज़ादी के बाद हुए चिपको आंदोलन को प्रेरित किया, जिसमें चमोली, उत्तराखंड में गौरा देवी सहित कई महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर उन्हें कटने से बचाया था। |
साईलेंट वैली प्रोजेक्ट |
1978 |
केरल में कुंतीपुझा नदी |
केरल शास्त्र साहित्य परिषद सुगाथाकुमारी |
केरल में साइलेंट वैली मूवमेंट कुद्रेमुख परियोजना के तहत कुंतीपुझा नदी पर एक पनबिजली बांँध के निर्माण के विरुद्ध था। |
जंगल बचाओ आंदोलन |
1982 |
बिहार का सिंहभूम ज़िला |
सिंहभूम की जनजातियाँ |
यह आंदोलन प्राकृतिक साल वन को सागौन से बदलने के सरकार के फैसले के खिलाफ था। |
अप्पिको आंदोलन |
1983 |
कर्नाटक |
लक्ष्मी नरसिम्हा |
प्राकृतिक पेड़ों की कटाई को रोकने के लिये। सागौन और नीलगिरि के पेड़ों के व्यावसायिक वानिकी के खिलाफ। |
टिहरी बाँध |
1980-90 |
उत्तराखंड में टिहरी पर भागीरथी और भिलंगना नदी |
टिहरी बाँध विरोधी संघर्ष समिति, सुंदरलाल बहुगुणा और वीरा दत्त सकलानी |
|
नर्मदा बचाओ आंदोलन |
1980 से वर्तमान तक |
गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र |
मेधा पाटकर, अरुंधती राय, सुंदरलाल बहुगुणा, बाबा आम्टे |