उत्तराखंड की नदियों पर पर्यावरणीय संकट | 27 Nov 2024

चर्चा में क्यों?

अपनी प्राचीन नदियों और झरनों के लिये जाना जाने वाला उत्तराखंड अभूतपूर्व पर्यावरणीय संकट का सामना कर रहा है। 

  • बदलते मौसम प्रारूप, जलवायु परिवर्तन और बढ़ती मानवीय गतिविधियों के कारण राज्य की 206 बारहमासी नदियाँ और जलधाराएँ सूखने के कगार पर हैं। 

मुख्य बिंदु

  • वर्तमान स्थिति: 
    • स्प्रिंग एंड रिजुवेनेशन अथॉरिटी (SARA) की एक रिपोर्ट के अनुसार , उत्तराखंड में वर्तमान में  5,428 जल स्रोत खतरे में हैं।
    • SARA के जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इन जल निकायों के क्षरण के लिये प्राकृतिक कारणों के बजाय मानवीय हस्तक्षेप मुख्य रूप से जिम्मेदार है
  • SARA की स्थापना: 
    • इस संकट के जवाब में, उत्तराखंड सरकार ने अपनी बारहमासी नदियों और जलधाराओं की स्थिति की जाँच के लिये SARA की स्थापना की। 
    • इस पहल का उद्देश्य इन महत्त्वपूर्ण जल स्रोतों पर  जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझना है।
    • SARA ने सभी संबंधित राज्य विभागों को एकजुट होकर इन जल निकायों की स्थिति पर डेटा प्रदान करने की अनुशंसा की है। इन निष्कर्षों ने सरकार के भीतर गंभीर चिंताओं को उत्पन्न किया है, जिसके परिणामस्वरूप तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
  • नदी पुनरुद्धार के लिये पायलट परियोजनाएं:
    • SARA ने पाँच प्रमुख नदियों को पुनर्जीवित करने के लिये एक पायलट परियोजना तैयार की है: 
      • देहरादून में सोंग नदी, पौड़ी में पश्चिमी नयार और पूर्वी नयार, नैनीताल में शिप्रा नदी और चंपावत में गौड़ी नदी।
      • राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (NIH) और IIT रुड़की को इन नदियों का अध्ययन करने का कार्य निर्दिष्ट किया गया है तथा निष्कर्षों के आधार पर इस परियोजना को अन्य नदियों तक विस्तारित करने की योजना है।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
    • जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि पिछले 150 वर्षों में विश्व के बाकी हिस्सों की तुलना में तिब्बत और हिमालय में अधिक स्पष्ट रही है
    • इस खतरनाक प्रवृत्ति के कारण महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय परिणाम सामने आ रहे हैं, जिनमें जल स्रोतों का सूखना भी शामिल है
    • जल संसाधन विभाग के आँकड़ों द्वारा स्पष्ट होता है कि राज्य में 288 जल स्रोतों में मूल जल स्तर का 50% से भी कम जल बचा है तथा लगभग 50 स्रोतों में 75% से भी कम जल बचा है।
  • संबंधित अवलोकन और प्रभाव: 
    • पर्यावरणविदों और स्थानीय अधिकारियों ने जल स्तर और नदी के मार्ग में भारी परिवर्तन देखा है। 
    • भीमताल में झील मैदान जैसी दिखने लगी है तथा अन्य नदियों और जल स्रोतों में भी इसी प्रकार का संकट उभर रहा है। 
    • जलवायु वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन के कारण पहाड़ टूट रहे हैं और नदियाँ या तो अपना मार्ग बदल रही हैं या बाढ़ के दौरान तबाही मचा रही हैं। 
    • हल्द्वानी में गौला और कोसी नदियों का जलस्तर गिर गया है, जिससे पेयजल और सिंचाई का संकट उत्पन्न हो गया है।