IIT-रुड़की के शोधकर्त्ताओं द्वारा प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली | 10 May 2024

चर्चा में क्यों?

हाल ही में IIT-रुड़की के शोधकर्त्ताओं ने वर्षा पैटर्न का विश्लेषण करके कम-से-कम छह घंटे की पूर्व चेतावनी देकर हिमालय क्षेत्र में भूस्खलन होने से पहले भविष्यवाणी करने के लिये एक फ्रेमवर्क विकसित की है।

मुख्य बिंदु:

  • यह अध्ययन एक सहकर्मी-समीक्षित वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है और इसे भारत में अपनी तरह का पहला अध्ययन माना जाता है।
  • मौसम विज्ञान, जल विज्ञान, भू-आकृति विज्ञान, रिमोट सेंसिंग और भू-तकनीकी इंजीनियरिंग जैसे विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञों की संयुक्त विशेषज्ञता ने एक ऐसी विधि का निर्माण किया है जो मौसम विज्ञान मॉडलिंग को मलबे के प्रवाह के संख्यात्मक सिमुलेशन के साथ जोड़ती है।
  • शोधकर्त्ता मौसम अनुसंधान एजेंसियों से पहाड़ियों में वर्षा के पैटर्न पर वास्तविक समय का डेटा एकत्र करेंगे।

भू-स्खलन

  • ये मुख्य रूप से पहाड़ी इलाकों में होने वाली प्राकृतिक आपदाएँ हैं जहाँ मृदा, चट्टान, भूविज्ञान और ढलान की अनुकूल परिस्थितियाँ होती हैं।
  • किसी ढलान से चट्टान, पत्थर, मृदा या मलबे के अचानक खिसकने को भूस्खलन कहा जाता है।
  • कारण:
    • इसके ट्रिगर करने वाले प्राकृतिक कारणों में भारी वर्षा, भूकंप, बर्फ का पिघलना और बाढ़ के कारण ढलानों का कटना शामिल है।
    • वे मानवजनित गतिविधियों जैसे उत्खनन, पहाड़ियों एवं पेड़ों की कटाई, अत्यधिक बुनियादी ढाँचे के विकास और मवेशियों द्वारा अत्यधिक चराई के कारण भी हो सकते हैं।
    • भूस्खलन को प्रभावित करने वाले कुछ मुख्य कारक हैं आश्मिक, भूवैज्ञानिक संरचनाएँ जैसे भ्रंश, पहाड़ी ढलान, जल निकासी, भू-आकृति विज्ञान, भूमि उपयोग और भूमि आवरण, मृदा की बनावट व गहराई तथा चट्टानों का अपक्षय।
    • जब योजना बनाने और पूर्वानुमान लगाने के लिये भूस्खलन संवेदनशीलता क्षेत्र निर्धारित किया जाता है तो इन सभी को ध्यान में रखा जाता है।