सीएसएसआरआई करनाल ने विकसित की सल्फर आधारित मृदा सुधार तकनीक | 31 Oct 2023
चर्चा में क्यों?
30 अक्तूबर, 2023 को केंद्रीय मृदा एवं लवणता अनुसंधान संस्थान (सीएसएसआरआई) करनाल के फसल एवं मृदा सुधार विभाग के अध्यक्ष डॉ. अरविंद कुमार रॉय ने बताया कि छह साल के शोध के बाद सीएसएसआरआई ने सल्फर आधारित मृदा सुधार तकनीक विकसित कर ली है।
प्रमुख बिंदु
- डॉ. अरविंद कुमार रॉय ने बताया कि अभी मृदा सुधार के लिये राजस्थान की खदानों से निकलने वाली जिप्सम का उपयोग होता है, लेकिन इसकी लगा तार कमी होती जा रही है, जिसके चलते कई वर्षों से वैज्ञानिक इसका विकल्प खोज रहे थे।
- सल्फर आधारित मृदा सुधार तकनीक के परिणामों के लिये सीएसएसआरआई के साथ-साथ हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान में कई स्थानों पर अध्ययन किया गया। साथ ही, इसका उपयोग विभिन्न फसलों, जैसे- धान, गेहूँ, कपास, बरसीम आदि पर भी किया गया।
- इस तकनीक का प्रयोग करके देश के एक बड़े भूभाग को फिर से उपजाऊ बनाया जा सकेगा, जिसमें फसलों की पैदावार होगी और देश का खाद्यान्न बढ़ेगा।
- अभी देश में 3.78 लाख हेक्टेयर भूमि क्षारीयता से प्रभावित है। जिस भूमि का पीएच मान 8.3 से अधिक हो जाता है, उसे क्षारीय भूमि माना जाता है। इसके अतिरिक्त क्षारीय जल के प्रयोग से फसलों का उत्पादन धीरे-धीरे गिरता जाता है। 10 से 15 सालों में ये स्थिति हो जाती है कि उस भूमि में फसलों की पैदावार बंद हो जाती है और भूमि बंजर होने लगती है।
- सीएसएसआरआई के वैज्ञानिकों ने इसका विकल्प तैयार करने पर शोध कार्य शुरू किया। ये शोध कार्य सीएसएसआरआई ने रिलायंस इंडस्ट्री के साथ मिलकर शुरू किया था। छह साल की मेहनत और अनुसंधान के बाद अब संस्थान ने सल्फर आधारित मृदा सुधार तकनीक को तैयार कर लिया है।
- उल्लेखनीय है कि इस तकनीक में उपयोग होने वाला सल्फर पेट्रोलियम रिफाइनरी से प्राप्त किया जाता है, जो निष्प्रयोज्य होता है। इससे जो गैसें निकलती हैं, उन्हें एक प्रक्रिया से गुज़ार कर सल्फर निकाला जाएगा। इसका बड़ा फायदा क्षारीय भूमि में सुधार तो है ही, दूसरा सबसे बड़ा फायदा भी होगा कि ये गैसों से प्रदूषण भी कम होगा।