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छत्तीसगढ़

देश का प्रथम ‘स्वदेशी ज्ञान अध्ययन केंद्र’

  • 28 Dec 2021
  • 3 min read

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में मध्य प्रदेश के डॉ. हरी सिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर में प्रारंभ किये गए देश के प्रथम स्वदेशी ज्ञान अध्ययन केंद्र के संचालन के लिये छत्तीसगढ़ परंपरागत वनौषधि प्रशिक्षित वैद्य संघ द्वारा सहयोग और मार्गदर्शन दिया जाएगा। 

प्रमुख बिंदु 

  • पारंपरिक वैद्यकीय ज्ञान आधारित चिकित्सा पद्धति की वैज्ञानिक प्रामाणिकता सिद्ध करने एवं दुर्लभ वनौषधियों के संरक्षण, संवर्धन एवं विकास के उद्देश्य से यह अध्ययन केंद्र प्रारंभ किया गया है। 
  • इस केंद्र के संचालन के लिये छत्तीसगढ़ परंपरागत वनौषधि प्रशिक्षित वैद्य संघ और डॉं. हरी सिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर के बीच 24 दिसंबर को एमओयू किया गया था। 
  • डॉ. हरी सिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर की कुलपति प्रोफेसर नीलिमा गुप्ता ने अध्ययन केंद्र के शुभारंभ अवसर पर कहा कि इस केंद्र के संचालन के लिये विश्वविद्यालय हर संभव मदद करेगा और यहाँ विलुप्त हो रहीं वनौषधियों के संरक्षण केंद्र के लिये विश्वविद्यालय परिसर में ही 10-20 एकड़ भूमि आवश्यकता अनुसार उपलब्ध कराई जाएगी। 
  • लोक स्वास्थ्य परंपरा संवर्धन अभियान भारत के राष्ट्रीय समन्वयक वैद्य निर्मल अवस्थी ने बताया कि यह केंद्र सरकार के सहयोग से संचालित किया जाएगा। भारत का यह ऐसा पहला स्वदेशी ज्ञान अध्ययन केंद्र होगा, जहाँ संपूर्ण भारत की लोक स्वास्थ्य परंपरा की वैज्ञानिक प्रामाणिकता सिद्ध करने हेतु पहल की जाएगी। विश्वविद्यालय में इसके लिये अलग से विभाग बनाया गया है, जिसे यूजीसी से मान्यता मिल चुकी है।
  • इस अध्ययन केंद्र में विद्यार्थियों को अनुसंधान हेतु मदद एवं पारंपरिक वैद्यों की उपचार पद्धति को वैज्ञानिक प्रमाणिकता मिल सकेगी। यह कार्य वैद्यों के परिवार की सतत् आजीविका विकास में सहायक सिद्ध होगा, दूसरी ओर आम जनमानस को असाध्य बीमारियों में वनौषधि चिकित्सा पद्धति का लाभ मिल सकेगा। 
  • अवस्थी ने बताया कि इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश के 25 ख्यातिप्राप्त पारंपरिक नाड़ी विशेषज्ञ वैद्य शामिल हुए। बस्तर, बिलासपुर एवं रायपुर के ख्यातिप्राप्त पारंपरिक वैद्यों ने आँखों से जाला निकाल कर वैज्ञानिकों को हतप्रभ कर दिया।
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