उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में बाल मृत्यु दर
- 08 Apr 2025
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चर्चा में क्यों?
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी वार्षिक स्वास्थ्य रिपोर्ट (2024-25) के अनुसार, विगत वर्षों में सुधार के बावजूद, उत्तर प्रदेश भारत में सबसे अधिक बाल मृत्यु दर वाले राज्यों में शामिल है।
मुख्य बिंदु
- बाल मृत्यु दर के बारे में:
- रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में प्रत्येक 1,000 बच्चों में से 43 बच्चे अपने पाँचवें जन्मदिन से पहले मर जाते हैं।
- वर्तमान शिशु मृत्यु दर (IMR) 1,000 जीवित जन्मों पर 38 है, जबकि नवजात मृत्यु दर (NMR) 28 है।
- यूनिसेफ इंडिया रिपोर्ट 2020 के अनुसार लगभग 46% मातृ मृत्यु और 40% नवजात मृत्यु प्रसव के दौरान या जन्म के बाद पहले 24 घंटों के भीतर हो जाती हैं।
- नवजात शिशुओं की मृत्यु के प्रमुख कारणों में समय से पहले जन्म (35%), नवजात संक्रमण (33%), जन्म के समय श्वासावरोध (20%) और जन्मजात विकृतियाँ (9%) शामिल हैं।
- हालाँकि, वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में सबसे अधिक गिरावट देखी गई।
- उत्तर प्रदेश ने अपने विज़न 2030 योजना के तहत वर्ष 2020 तक अपनी मातृ मृत्यु दर (MMR) को 140 प्रति लाख जीवित जन्म तक कम करने का लक्ष्य रखा था।
- हालांकि, नवंबर 2022 में भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा प्रकाशित नमूना पंजीकरण प्रणाली (SRS) रिपोर्ट 2018-20 से पता चला है कि MMR 167 प्रति लाख जीवित जन्म था, जो राष्ट्रीय औसत 97 प्रति लाख जीवित जन्म से अधिक है।
- भारत का नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG) रिपोर्ट में कहा गया है कि NFHS 4 (2015-16) से NFHS 5 (2019-21) तक संस्थागत प्रसव, नवजात मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर और 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर जैसे संकेतकों में सुधार हुआ है।
- बाल मृत्यु दर के कारण:
- सेप्टीसीमिया (Sepsis) यह एक गंभीर रक्त संक्रमण है, जो सेप्सिस नामक जानलेवा स्थिति और अंग क्षति का कारण बन सकता है।
- राज्य में घर पर प्रसव की दर अधिक है, जो एक बड़ा खतरा है। घर पर प्रसव में प्रशिक्षित दाइयों की कमी, स्वच्छता की कमी, और चिकित्सा पेशेवरों की अनुपस्थिति संक्रमण के जोखिम को बढ़ाती है।
- उत्तर प्रदेश में दूरदराज और कम सेवा वाले क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल की कमी है। स्वास्थ्य सेवा का अभाव, जैसे प्रसवपूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल का अभाव, शिशु मृत्यु दर को बढ़ाता है।
- सरकार ने कई योजनाएँ शुरू की हैं, जैसे जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK) और घर-आधारित नवजात शिशु देखभाल (HBNC), लेकिन इन योजनाओं का लाभ सभी परिवारों तक समान रूप से नहीं पहुँच पा रहा है। इसके कारण, विशेषकर दूरदराज के क्षेत्रों में शिशुओं की मृत्यु दर अधिक है।
- कुपोषण और जलवायु परिवर्तन के कारण बच्चों के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। जिससे शिशु मृत्यु दर में वृद्धि होती है।
- बहुत से परिवारों में प्रसव के दौरान संक्रमण और शिशु देखभाल के बारे में जागरूकता की कमी है।