छत्तीसगढ़ में 'अवैध धर्मांतरण' रोकने के लिये बनेगा कानून | 16 Feb 2024
चर्चा में क्यों?
छत्तीसगढ़ सरकार राज्य में "अवैध धार्मिक रूपांतरण" को रोकने के लिये कानून लाने की योजना बना रही है।
मुख्य बिंदु:
- इन गतिविधियों को रोकने के लिये, 'धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक' नामक एक धर्मांतरण विरोधी विधेयक प्रस्तुत किया जाएगा।
- CM विष्णुदेव साय के अनुसार, ईसाई मिशनरियाँ स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा की आड़ में धर्मांतरण करा रही थीं।
- सरकार ने घोषणा की कि वह बलपूर्वक या प्रलोभन द्वारा धर्मांतरण को समाप्त कर देगी।
धर्म की स्वतंत्रता
- प्रत्येक नागरिक को अपनी पसंद के धर्म का प्रचार और अभ्यास करने का अधिकार तथा स्वतंत्रता है।
- यह अधिकार सरकारी हस्तक्षेप के डर के बिना इसे सभी के बीच फैलाने का अवसर भी प्रदान करता है।
- लेकिन साथ ही, राज्य से यह अपेक्षा की जाती है कि वह देश के अधिकार क्षेत्र के भीतर सौहार्दपूर्ण ढंग से इसका अभ्यास करे।
- धर्म की स्वतंत्रता से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 25: यह अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को स्वतंत्र रूप से अपनाने, आचरण करने तथा प्रचार-प्रसार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 26: यह धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता देता है।
- अनुच्छेद 27: यह किसी विशेष धर्म के प्रचार के लिये करों के भुगतान की स्वतंत्रता निर्धारित करता है।
- अनुच्छेद 28: यह कुछ शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा में भाग लेने की स्वतंत्रता देता है।
धर्म की स्वतंत्रता पर प्रमुख न्यायिक घोषणाएँ
- बिजोय इमैनुएल और अन्य बनाम केरल राज्य (1986):
- इस मामले में, यहोवा के साक्षी संप्रदाय के तीन बच्चों को स्कूल से निलंबित कर दिया गया क्योंकि उन्होंने यह दावा करते हुए राष्ट्रगान गाने से मना कर दिया कि यह उनके विश्वास के सिद्धांतों के खिलाफ है। न्यायालय ने माना कि निष्कासन मौलिक अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।
- आचार्य जगदीश्वरानंद बनाम पुलिस आयुक्त, कलकत्ता (1983):
- न्यायालय ने माना कि आनंद मार्ग एक अलग धर्म नहीं बल्कि एक धार्मिक संप्रदाय है और सार्वजनिक सड़कों पर तांडव का प्रदर्शन आनंद मार्ग का एक अनिवार्य अभ्यास नहीं है।
- एम. इस्माइल फारूकी बनाम भारत संघ (1994):
- शीर्ष न्यायालय ने कहा कि मस्जिद इस्लाम की अनिवार्य प्रथा नहीं है और एक मुसलमान कहीं भी, यहाँ तक कि खुले में भी नमाज़ पढ़ सकता है।
- राजा बीराकिशोर बनाम उड़ीसा राज्य (1964):
- जगन्नाथ मंदिर अधिनियम, 1954 की वैधता को चुनौती दी गई थी क्योंकि इसने पुरी मंदिर के मामलों के प्रबंधन के लिये प्रावधान इस आधार पर बनाए थे कि यह अनुच्छेद 26 का उल्लंघन कर रहा है। न्यायालय ने माना कि अधिनियम केवल सेवा पूजा के धर्मनिरपेक्ष पहलू को विनियमित करता है, इसलिये, यह अनुच्छेद 26 का उल्लंघन नहीं है।