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झारखंड

झारखंड में जाति जनगणना

  • 19 Feb 2024
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

झारखंड में जल्द ही पड़ोसी राज्य बिहार की तर्ज पर राज्य में जाति जनगणना होगी।

मुख्य बिंदु:

  • सीएम ने कार्मिक विभाग को एक मसौदा (सर्वेक्षण करने के लिये SoP) तैयार करने और इसे मंज़ूरी के लिये कैबिनेट के समक्ष रखने का निर्देश दिया है।
  • झारखंड में जाति आधारित सर्वेक्षण 7 जनवरी से 2 अक्तूबर 2023 के बीच एकत्र आँकड़ों के आधार पर किया जाएगा।

जनगणना:

  • जनगणना की उत्पत्ति:
    • भारत में जनगणना की शुरुआत वर्ष 1881 की औपनिवेशिक काल के समय हुई थी।
    • जनगणना कार्य का विकास होता गया जिसका प्रयोग सरकार, नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और अन्य व्यक्तियों द्वारा भारतीयों की जनसंख्या पर डेटा एकत्र करने, संसाधनों तक पहुँच बनाने, सामाजिक परिवर्तन की रूपरेखा बनाने, परिसीमन अभ्यास आदि के लिये किया जाता है।
  • सामाजिक-आर्थिक और जाति-जनगणना (Socio-Economic and Caste Census- SECC) के रूप में पहली जाति जनगणना:
    • इसे SECC पहली बार वर्ष 1931 में आयोजित किया गया था।
    • SECC का उद्देश्य ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में प्रत्येक भारतीय परिवार से आँकड़े एकत्रित करना तथा उनसे जुड़े निम्नलिखित तथ्यों के बारे में पूछताछ करना है:
      • आर्थिक स्थिति, केंद्र और राज्य अधिकारियों को अभाव, क्रमपरिवर्तन एवं संयोजन के विभिन्न संकेतक विकसित करने की अनुमति देती है, जिसका उपयोग प्रत्येक प्राधिकरण एक गरीब या वंचित व्यक्ति को नामित करने के लिये किया जा सके।
      • इसका मतलब प्रत्येक व्यक्ति से उनकी विशिष्ट जाति का नाम पूछना भी है ताकि सरकार को यह पुनर्मूल्यांकन करने में मदद मिल सके कि कौन-सी जाति समूह आर्थिक रूप से पिछड़े थे और कौन-से बेहतर थी।
  • जनगणना और SECC के बीच अंतर:
    • जनगणना भारतीय जनसंख्या का वर्णन करता है, जबकि SECC राज्य सरकार द्वारा समर्थित लाभार्थियों की पहचान करने का एक उपकरण है।
    • चूँकि जनगणना जनगणना अधिनियम, 1948 के अंतर्गत आती है, इसलिये सभी डेटा को गोपनीय माना जाता है, जबकि SECC वेबसाइट के अनुसार, "SECC में दी गई सभी व्यक्तिगत जानकारियाँ सरकारी विभागों द्वारा परिवारों को लाभ प्रदान करने और/या लाभों से प्रतिबंधित करने हेतु उपयोग के लिये उपलब्ध होती।”
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