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State PCS Current Affairs

उत्तर प्रदेश

बुलडोज़र न्याय

  • 14 Sep 2024
  • 5 min read

चर्चा में क्यों

हाल ही में भारत के उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India- SC) ने "बुलडोज़र न्याय " की प्रथा की आलोचना की तथा इस बात पर प्रकाश डाला कि व्यक्तियों या उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ आपराधिक आरोपों के आधार पर संपत्तियों को ध्वस्त करना विधि के शासन का उल्लंघन है।

मुख्य बिंदु: 

  • "बुलडोज़र न्याय" से तात्पर्य आपराधिक गतिविधियों या दंगों में संलिप्तता के संदिग्ध व्यक्तियों की संपत्ति को बुलडोज़र का उपयोग करके ध्वस्त करने की प्रथा से है, जिसमें प्रायः विधि की उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता है।
    • उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मध्य प्रदेश, गुजरात, असम और महाराष्ट्र सहित विभिन्न भारतीय राज्यों में इस प्रथा की सूचना मिली है।
    • अतिक्रमण या अनधिकृत निर्माण के लिये नगरपालिका कानूनों के तहत प्रायः ध्वस्तीकरण को उचित ठहराया जाता है ।
  • यह प्रथा उच्चतम  न्यायालय के निर्णयों जैसे- सुदामा सिंह एवं अन्य बनाम दिल्ली सरकार तथा अजय माकन एवं अन्य बनाम भारत संघ में उल्लिखित उचित प्रक्रिया आवश्यकताओं को दरकिनार कर देती है।
    • उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में इस प्रथा की निंदा की है तथा इस बात पर ज़ोर दिया है कि आरोपों के आधार पर संपत्तियों को ध्वस्त करना विधि के शासन और विधि की उचित प्रक्रिया का उल्लंघन है 
  • उच्चतम न्यायालय ने गैर-कानूनी ध्वस्तीकरण पर उपयुक्त अखिल भारतीय दिशा-निर्देश तैयार करने के लिये संबंधित पक्षों से सुझाव आमंत्रित किये हैं
  • एक विश्लेषण से पता चला है कि प्रक्रियात्मक दिशा-निर्देशों को प्रासंगिक कानून और नियमों में शामिल किया जाना चाहिये प्रत्येक चरण पर अनेक जाँच-पड़ताल बिंदुओं के साथ चरणबद्ध तरीके से संरचित किया जाना चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी प्रतिकूल या अपरिवर्तनीय कार्यवाही करने से पहले सभी आवश्यक कदम उठाए जाएँ।
    • विध्वंस-पूर्व चरण:
      • सबूत का भार: विध्वंस और विस्थापन को उचित ठहराने के लिये सबूत का भार प्राधिकारियों पर डालना, जिससे मानव अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
      • नोटिस और प्रचार: भूमि अभिलेखों और पुनर्वास योजनाओं के बारे में जानकारी सहित एक तर्कपूर्ण नोटिस प्रदान करना तथा प्रभावित व्यक्तियों को प्रतिक्रिया देने के लिये पर्याप्त समय देना।
      • स्वतंत्र समीक्षा: सभी नियोजित ध्वस्तीकरणों, विशेषकर आवासीय क्षेत्रों में, की समीक्षा न्यायिक समुदाय और नागरिक समाज के सदस्यों वाली एक निष्पक्ष समिति द्वारा की जानी चाहिये।
      • सहभागिता और योजना: प्रभावित पक्षों से वैकल्पिक आवास और मुआवज़े के लिये बातचीत करना तथा साथ ही कमज़ोर समूहों की ज़रूरतों को भी ध्यान में रखना। नोटिस एवं विध्वंस के बीच कम-से-कम एक महीने का समय देना चाहिये।
  • विध्वंस के दौरान:
    • बल का न्यूनतम प्रयोग: शारीरिक बल और बुलडोज़र जैसी भारी मशीनरी के प्रयोग से बचना।
    • आधिकारिक उपस्थिति: इस प्रक्रिया की निगरानी के लिये विध्वंस में शामिल न होने वाले सरकारी अधिकारियों की उपस्थिति सुनिश्चित करना।
    • निर्धारित समय: अचानक कार्यवाही से बचने के लिये ध्वस्तीकरण का समय पहले से तय किया जाना चाहिये।
  • विध्वंस के बाद (पुनर्वास):
    • पुनर्वास: यह सुनिश्चित करने के लिये कि कोई भी बेघर न रहे, पर्याप्त अस्थायी या स्थायी आवास समाधान प्रदान करना।
    • शिकायत निवारण: प्रभावित व्यक्तियों के लिये ध्वस्तीकरण निर्णयों को चुनौती देने हेतु त्वरित शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना।
    • उपाय: मुआवज़ा, क्षतिपूर्ति तथा मूल घरों में संभावित वापसी जैसे उपाय सुनिश्चित करना।


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