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उत्तराखंड

वन्यजीवों से फसलों को बचाने के लिये अब होगी बॉयो-फेंसिंग

  • 17 May 2023
  • 4 min read

चर्चा में क्यों 

16 मई, 2023 को उत्तराखंड वन विभाग के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डॉ. समीर सिन्हा ने बताया कि राज्य में वन्यजीवों द्वारा होने वाले फसलों के नुकसान को कम करने के लिये सौर ऊर्जा बाड़ की जगह अब बॉयो-फेंसिंग को बढ़ावा दिया जाएगा।  

प्रमुख बिंदु  

  • बॉयो-फेंसिंग को बढ़ावा देने के लिये राज्य सरकार की ओर से इसके लिये सेल गठित करने के साथ ही विशेष अधिकारी नियुक्त किये जाने के निर्देश दिये गए हैं। यह सेल बायो-फेंसिंग को बढ़ावा देने के साथ ही इन विषयों पर शोध भी करेगी। 
  • कैंपा फंड में ही इसके लिये बजट की व्यवस्था की जाएगी। अलग-अलग फेंसिंग के लिये पौधों की प्रजाति का अध्ययन कराया जाएगा। 
  • ज्ञातव्य है कि अब तक फसलों को नुकसान से बचाने के लिये सौर ऊर्जा बाड़ ही लगाई जाती थी, लेकिन इसे लगाने में खर्च अधिक आता है। विभाग की ओर से एक बार बाड़ लगाने के बाद इसे ग्रामीणों को सौंप दिया जाता है। ठीक से रखरखाव नहीं होने के कारण यह बाड़ जल्दी ही खराब हो जाती है और लाभार्थियों को अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाते हैं। 
  • इस समस्या से बचने के लिये बीते दिनों मुख्य सचिव डॉ. सुखबीर सिंह संधु ने कैंपा (वनारोपण निधि प्रबंधन व योजना प्राधिकरण) संचालन समिति की बैठक में वनाधिकारियों को बॉयो-फेंसिंग बाड़ को बढ़ावा देने के निर्देश दिये थे। 
  • प्रदेश में खासतौर पर जंगली सूअर, हाथी और बंदर फसलों को नुकसान पहुँचाते हैं। जिस क्षेत्र में जिस वन्यजीव का आतंक अधिक है, उस क्षेत्र में उसी के अनुरूप बॉयो-फेंसिंग की जाएगी। 
  • मौसम, जलवायु और भौगोलिक स्थितियों को देखते हुए अलग-अलग जगह पर अलग-अलग बॉयो-फेंसिंग की जाती है। इसमें आमतौर पर काला बाँस, कांटा बाँस, राम बाँस, जेरेनियम, लेमनग्रास, विभिन्न प्रकार के कैक्टस, यूफोरबिया एंटीकोरम (त्रिधारा), डेविल्स बैकबोन, पूर्वी लाल, क्लेरोडेंड्रम इनर्मिस, बोगनविलिया, करौंदा, जेट्रोफा करकस, डुरंटा इरेक्टा, हाईब्रिड विलेट्री, लीलैंड सरू और हेमेलिया आदि शामिल हैं। 
  • देहरादून वन प्रभाग के वनाधिकारी नीतीशमणि त्रिपाठी ने बताया कि बॉयो-फेंसिग का प्रयोग वर्ष 2015 में लैंसडाउन में किया गया था, जो सफल रहा। कुछ समय पहले रामनगर में भी यह तरीका अपनाया गया। इस प्रकार की फेंसिंग अनेक देशों में प्रयोग की जा रही है।
  • इसके तहत मधुमक्खी पालन का बॉयो-फेंसिंग के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसमें मधुमक्खी के डिब्बों को खेत के किनारे ज़मीन पर रखने के बजाय पेड़ों या खूंटों की मदद से ज़मीन से ऊपर एक तार की सहायता से लटका दिया जाता है। जैसे ही कोई जानवर इस तार को हिलाता है, मधुमिक्खयाँ बाहर आकर उस पर हमला कर देती हैं। हाथियों को खेतों से दूर रखने में यह तरीका कारगर साबित हुआ है। 
  • इसलिये बेहतर होती है बॉयो-फेंसिंग: 
    • सौर ऊर्जा बाड़ से सस्ती पड़ती है तथा लगाने के बाद रखरखाव का बहुत ज्यादा झंझट नहीं।
    • विभिन्न प्रकार की बाड़ से विभिन्न प्रकार के उत्पादन भी मिलते हैं।
    • भूमि का कटाव रोकती हैं।
    • यह दीवार बनाने या गड्ढे खोदने से ज्यादा सस्ता सौदा है।
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