उत्तराखंड
अद्वैत आश्रम की 125वीं वर्षगाँठ
- 08 Apr 2024
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चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड में रामकृष्ण मठ और मिशन का केंद्र, मायावती में अद्वैत आश्रम की 125वीं वर्षगाँठ मनाई गई
- इस उपलब्धि के उपलक्ष्य में हाल ही में मायावती में दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया गया था।
मुख्य बिंदु:
- आश्रम की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने वर्ष 1899 में की थी।
- आश्रम का उद्देश्य अनुष्ठानिक परंपराओं से मुक्त अद्वैत दर्शन का अध्ययन, अभ्यास और प्रचार करना है तथा इसका प्रसार करने में दूसरों को प्रशिक्षित करना भी है।
- थोड़े ही समय में आश्रम पूर्व और पश्चिम के सर्वोत्तम विचारधाराओं का केंद्र बिंदु बन गया। इसने मूल अद्वैत सिद्धांत का प्रसार करने में मदद की।
- कोलकाता में अद्वैत आश्रम की स्थापना इसके प्रकाशनों और पत्रिका ‘प्रबुद्ध भारत’ की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये मायावती आश्रम के 21 वर्ष बाद की गई थी।
- अद्वैत वेदांत हिंदू धर्म का मूल है, जो मानव जाति के अस्तित्त्व और एकजुटता की शिक्षा देता है।
- पिछले 125 वर्षों से अद्वैत आश्रम अपनी कोलकाता शाखा से प्रकाशित साहित्य के माध्यम से अद्वैत विचारधारा के सिद्धांतों का प्रसार कर रहा है।
अद्वैत वेदांत
- यह शुद्ध अद्वैतवाद की एक दार्शनिक स्थिति को स्पष्ट करता है, एक पुनरीक्षण विश्वदृष्टि जो यह प्राचीन उपनिषद ग्रंथों से संबद्ध है।
- अद्वैत वेदांतियों के अनुसार, उपनिषद् अद्वैत के एक मौलिक सिद्धांत को प्रकट करते हैं जिसे 'ब्रह्म' कहा जाता है, जो सभी वस्तुओं की वास्तविकता है।
- अद्वैतवादी ब्रह्म को व्यक्तित्व और अनुभवजन्य बहुलता से परे समझते हैं। वे यह स्थापित करना चाहते हैं कि किसी व्यक्ति का मूल (आत्मन) ब्रह्म है।
- अद्वैत वेदांत का मूल ज़ोर यह है कि आत्मा शुद्धाद्वैत/ शुद्ध अनैच्छिक चेतना है।
- यह बिना किसी द्वितीय, अद्वैत, अनंत अस्तित्त्व वाला और संख्यात्मक रूप से ब्रह्म के समान है।
स्वामी विवेकानंद
- उनका जन्म 12 जनवरी, 1863 को नरेंद्र नाथ दत्त के रूप में हुआ था।
- वह एक साधु और रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य थे।
- उन्होंने वेदांत और योग के भारतीय दर्शन को पश्चिमी विश्व में पेश किया तथा उन्हें अंतरधार्मिक जागरूकता बढ़ाने, 19वीं सदी के अंत में हिंदू धर्म को विश्व मंच पर लाने का श्रेय दिया जाता है।
- उन्होंने वर्ष 1987 में अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस के नाम पर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। संस्था ने भारत में व्यापक शैक्षणिक और परोपकारी कार्य किये।
- उन्होंने वर्ष 1893 में शिकागो (U.S.) में आयोजित प्रथम धर्म संसद में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया।