13 राज्यों से 97% अनुसूचित जाति के विरुद्ध अत्याचार | 23 Sep 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, एक सरकारी रिपोर्ट से पता चला है कि वर्ष 2022 में अनुसूचित जातियों (SC) के खिलाफ 97.7% अत्याचार 13 राज्यों में केंद्रित थे, जिनमें उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में ऐसे मामलों की सबसे अधिक संख्या दर्ज की गई।
प्रमुख बिंदु
- वर्ष 2022 में अनुसूचित जातियों (SC) के विरुद्ध अत्याचार:
- अनुसूचित जातियों के विरुद्ध सभी अत्याचारों में से 97.7% (52,866 मामलों में से 51,656) 13 राज्यों में दर्ज किये गए।
- उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक मामले (12,287 या 23.78%) दर्ज किये गए।
- वर्ष 2022 में अनुसूचित जनजातियों (ST) के विरुद्ध अत्याचार:
- अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध सभी अत्याचारों में से 98.91% मामले 13 राज्यों (कुल 9,735 मामले) में दर्ज किये गए।
- मध्य प्रदेश में सबसे अधिक मामले (2,979 या 30.61%) थे।
- इसके बाद राजस्थान में 2,498 मामले (25.66%) और ओडिशा में 773 मामले (7.94%) दर्ज किये गए।
- दोषसिद्धि दर:
- SC/ST अधिनियम, 1989 के तहत मामलों में दोषसिद्धि दर वर्ष 2020 में 39.2% से घटकर वर्ष 2022 में 32.4% हो गई।
- SC/ST संरक्षण उपाय:
- आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में SC/ST संरक्षण प्रकोष्ठ स्थापित किये गए हैं।
- बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, केरल और मध्य प्रदेश में SC/ST अपराधों से निपटने के लिये विशेष पुलिस स्टेशन स्थापित किये गए हैं।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 :
- SC ST अधिनियम, 1989 संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है जो एससी एवं SC समुदायों के सदस्यों के विरुद्ध भेदभाव का निषेध करने तथा उनके विरुद्ध अत्याचार को रोकने के लिये बनाया गया है।
- यह अधिनियम इस निराशाजनक वास्तविकता को भी स्वीकार करता है कि अनेक उपाय करने के बावजूद अनुसूचित जातियों / अनुसूचित जनजातियों को उच्च जातियों के हाथों विभिन्न प्रकार के अत्याचारों का सामना करना पड़ रहा है।
- यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 15 (भेदभाव का प्रतिषेध), 17 (अस्पृश्यता का उन्मूलन) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण) में उल्लिखित संवैधानिक सुरक्षा उपायों को ध्यान में रखते हुए लागू किया गया है, जिसका दोहरा उद्देश्य इन कमज़ोर समुदायों के सदस्यों की सुरक्षा के साथ-साथ जाति आधारित अत्याचारों के पीड़ितों को राहत और पुनर्वास प्रदान करना है।
- संशोधित SC/ST अधिनियम, 2018 में प्रारंभिक जाँच अनिवार्य नहीं है औरSC/ST पर अत्याचार के मामलों में FIR दर्ज करने के लिये वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति हेतु प्राधिकारी की पूर्व अनुमति की भी आवश्यकता नहीं है।